SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 520
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम स्थान—प्रथम उद्देश गये हैं, जैसे अनीक – १. पादातानीक, २. पीठानीक, ३. कुंजरानीक, ४. महिषानीक, ५. रथानीक । अनीकाधिपति— १. भद्रसेन — पादातानीक -अधिपति । २. अश्वराज यशोधर — पीठानीक- अधिपति । ३. हस्तिराज सुदर्शन — कुंजरानीक - अधिपति । ४. नीलकण्ठ– महिषानीक अधिपति । ५. आनन्द — रथानीक - अधिपति (६१) । जैसे भूतानन्द के पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं, उसी प्रकार सुपर्णकुमारराज, सुपर्णकुमारेन्द्र वेणुदालि के भी पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं। ६२—– जधा धरणस्स तहा सव्वेसिं दाहिणिल्लाणं जाव घोसस्स । जिस प्रकार धरण के पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं, उसी प्रकार सभी दक्षिणदिशाधिपति शेष भवनपतियों के इन्द्र – हरिकान्त, अग्निशिख, पूर्ण, जलकान्त, अमितगति, वेलम्ब और घोष के भी संग्राम करने वाले पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति क्रमशः - भद्रसेन, अश्वराज यशोधर, हस्तिराज सुदर्शन, नीलकण्ठ और आनन्द जानना चाहिए । ४५३ ६३—– जधा भूताणंदस्स तथा सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव महाघोसस्स । जिस प्रकार भूतानन्द के पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं, उसी प्रकार उत्तरादिशाधिपति शेष सभी भवनपतियों के अर्थात् वेणुदालि, हरिस्सह, अग्निमानव, विशिष्ट, जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभंजन और महाघोष के पांच-पांच अनीक और पांच-पांच अनीकाधिपति उन्हीं नामवाले जानना चाहिए (६३) । ६४— सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो पंच संगामिया अणिया, पंच संगामियाणियाधिवती पण्णत्ता, तं जहा——पायत्ताणिए, (पीढाणिए, कुंजराणिए), उसभाणिए, रधाणिए । हरिणेगमेसी पायत्ताणियाधिवती, वाऊ आसराया पीढाणियाधिवती, एरावणे हत्थराया कुंजराणियाधिपती, दामड्डी उसभाणियाधिपती, माढरे रधाणियाधिपती । देवराज देवेन्द्र शक्र के संग्राम करने वाले पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं, जैसेअनीक—१. पादातानीक, २. पीठानीक, ३. कुंजरानीक, ४. वृषभानीक, ५. रथानीक । अनीकाधिपति १. हरिनैगमेषी २. अश्वराज वायु ३. हस्तिराज ऐरावण— कुंजरानीक - अधिपति । ४. दामर्धि — वृषभानीक- अधिपति । ५. माठर — रथानीक - अधिपति (६४) । पादातानीक - अधिपति । पीठानीक - अधिपति ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy