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स्थानाङ्गसूत्रम्
६५- - ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो पंच संगामिया अणिया जाव पायत्ताणिए, पीढाणिए, कुंजराणिए, उभाणिए, रधाणिए ।
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लहुपरक्कमे पायत्ताणियाधिवती, महावाऊ आसराया पीढाणियाहिवती, पुप्फदंते हत्थिराया कुंजराणियाहिवती, महादामड्डी उसभाणियाहिवती, महामाढरे रधाणियाहिवती ।
देवराज देवेन्द्र ईशान के संग्राम करने वाले पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं, जैसेअनीक – १. पादातानीक, २. पीठानीक, ३. कुंजरानीक, ४. वृषभानीक, ५. रथानीक ।
अनीकाधिपति—
१. लघुपराक्रम — पादातानीक - अधिपति ।
२. अश्वराज महावायु— पाठानीक - अधिपति ।
३. हस्तिराज पुष्पदन्त — कुंजरानीक - अधिपति ।
४. महादामर्धि— वृषभानीक- अधिपति ।
५. महामाठर — रथानीक - अधिपति (६५) ।
६६ - जधा सक्कस्स तहा सव्वेसिं दाहिणिल्लाणं जाव आरणस्स ।
जिस प्रकार देवराज देवेन्द्र शक्र के पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं, उसी प्रकार आरणकल्प तक के सभी दक्षिणेन्द्रों के भी संग्राम करने वाले पांच-पांच अनीक और पांच-पांच अनीकाधिपति जानना चाहिए (६६) ।
६७ - जधा ईसाणस्स तहा सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव अच्चुतस्स ।
जिस प्रकार देवराज देवेन्द्र ईशान के पांच अनीक और पांच अनीकाधिपति कहे गये हैं, उसी प्रकार अच्युतकल्प तक के सभी उत्तरेन्द्रों के भी संग्राम करने वाले पांच-पांच अनीक और पांच-पांच अनीकाधिपति जानना चाहिए (६७)।
देवस्थिति-सूत्र
६८ - सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अब्धंतरपरिसाए देवाणं पंच पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता । देवराज देवेन्द्र शक्र की अन्तरंग परिषद् के परिषद् - देवों की स्थिति पांच पल्योपम कही गई है (६८) । ६९ - ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अब्धंतरपरिसाए देवीणं पंच पलिओवमाइं ठिती
पण्णत्ता ।
देवराज देवेन्द्र ईशान की अन्तरंग परिषद् की देवियों की स्थिति पांच पल्योपम कही गई है (६९) ।
प्रतिघात - सूत्र
७०–
- पंचविहा पडिहा पण्णत्ता, तं जहा गतिपडिहा, ठितिपडिहा, बंधणपडिहा, भोगपडिहा, बल - वीरिय- पुरिसयार - परक्कमपडिहा ।