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स्थानाङ्गसूत्रम्
है, जैसे गृहस्थ- दशा में महावीर स्वामी ।
३. अमुक्त और मुक्तरूप— कोई पुरुष परिग्रहादि से अमुक्त होकर के भी मुक्त के समान बाह्य रूपवाला होता है, जैसे धूर्त्त साधु ।
४. अमुक्त और अमुक्तरूप—–— कोई पुरुष अमुक्त होता है और अमुक्त के समान ही रूपवाला होता है, जैसे गृहस्थ (६१३) ।
गति - आगति-सूत्र
६१४— पंचिंदियतिरिक्खजोणिया चउगइया चउआगइया पण्णत्ता, तं जहा —— पंचिंदि - तिरिक्खजोणि पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जमाणे णेरइएहिंतो वा, तिरिक्खजोणिएहिंतो वा, मणुस्सेहिंतो वा, देवेहिंतो वा उववज्जेज्जा ।
से चेव णं से पंचिंदियतिरिक्खजोणिए पंचिंदियतिरिक्खजोणियत्तं विप्पजहमाणे णेरइयत्ताए वा, जाव (तिरिक्खजोणियत्ताए वा, मणुस्सत्ताए वा ), देवत्ताए वा गच्छेज्जा ।
पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव (मर कर) चारों गतियों में जाने वाले और चारों गतियों से आने (जन्म लेने) वाले कहे गये हैं, जैसे—
१. पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता हुआ नारकियों से या तिर्यग्योनिकों से या मनुष्यों से या देवों से आकर उत्पन्न होता है।
२. पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनि को छोड़ता हुआ ( मर कर ) नारकियों में, तिर्यग्योनिकों में, मनुष्यों में या देवों में जाता (उत्पन्न होता है ) (६१४)।
६१५— मणुस्सा चउगइया चउआगइया ( पण्णत्ता, तं जहा— मणुस्से मणुस्सेसु उववज्जमाणे इहिंतो वा तिरिक्खिजोणिएहिंतो वा, मणुस्सेहिंतो वा, देवेहिंतो वा उववज्जेज्जा ।
से चेवणं से मणुस्से मणुस्सत्तं विप्पजहमाणे णेरइयत्ताए वा, तिरिक्खजोणियत्ताए वा, मणुस्सत्ताए वा, देवत्ताए वा गच्छेज्जा ) ।
मनुष्य चारों गतियों में जाने वाले और चारों गतियों में आने वाले कहे गये हैं, जैसे—
१. मनुष्य मनुष्यों में उत्पन्न होता हुआ नारकियों से, या तिर्यग्योनिकों से, या मनुष्यों से, या देवों से आकर उत्पन्न होता है।
२. मनुष्य मनुष्यपर्याय को छोड़ता हुआ नारकियों में, या तिर्यग्योनियों में, या मनुष्यों में, या देवों में उत्पन्न होता है (६१५) ।
संयम- असंयम-सूत्र
६१६ – बेइंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स चउव्विहे संजमे कज्जति, तं जहा जिब्भामयातो सोक्खातो अववरोवित्ता भवति, जिब्भामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति, फासामयातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति, फासामएणं दुक्खेणं असंजोगित्ता भवति ।