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________________ ४२१ चतुर्थ स्थान–चतुर्थ उद्देश द्वीन्द्रिय जीवों को नहीं मारने वाले पुरुष के चार प्रकार का संयम होता है, जैसे१. द्वीन्द्रिय जीवों के जिह्वामय सुख का घात नहीं करता, यह पहला संयम है। २.द्रीन्द्रिय जीवों के जिह्वामय द:ख का संयोग नहीं करता, यह दूसरा संयम है। ३. द्वीन्द्रिय जीवों के स्पर्शमय सुख का घात नहीं करता, यह तीसरा संयम है। ४. द्वीन्द्रियों जीवों के स्पर्शमय दुःख का संयोग नहीं करता, यह चौथा संयम है (६१६)। ६१७- बेइंदिया णं जीवा समारभमाणस्स चउविधे असंजमे कज्जति, तं जहा जिब्भामयातो सोक्खातो ववरोवित्ता भवति, जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगित्ता भवति, फासामयातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति, (फासामएणं दुक्खेणं संजोगित्ता भवति)। द्वीन्द्रिय जीवों का घात करने वाले पुरुष के चार प्रकार का असंयम होता है, जैसे१. द्वीन्द्रिय जीवों के जिह्वामय सुख का घात करता है, यह पहला असंयम है। २. द्वीन्द्रिय जीवों के जिह्वामय दुःख का संयोग करता है, यह दूसरा असंयम है। ३.द्वीन्द्रिय जीवों के स्पर्शमय सुख का घात करता है, यह तीसरा असंयम है। ४. द्वीन्द्रिय जीवों के स्पर्शमय दुःख का संयोग करता है, यह चौथा असंयम है (६१७)। क्रिया-सूत्र ६१८- सम्मद्दिट्ठियाणं णेरइयाणं चत्तारि किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चखाणकिरिया। सम्यग्दृष्टि नारकियों के चार क्रियाएं कही गई हैं, जैसे१. आरम्भिकी क्रिया, २. पारिग्रहिकी क्रिया, ३. मायाप्रत्ययिकी क्रिया, ४. अप्रत्याख्यान क्रिया (६१८)। ६१९- सम्मदिट्ठियाणमसुरकुमाराणं चत्तारि किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- (आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया)। सम्यग्दृष्टि असुरकुमारों में चार क्रियाएं कही गई हैं, जैसे१. आरम्भिकी क्रिया, २. पारिग्रहिकी क्रिया, ३. मायाप्रत्ययिकी क्रिया, ४. अप्रत्याख्यान क्रिया (६१९)। ६२०- एवं विगलिंदियवजं जाव वेमाणियाणं। इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर सभी सम्यग्दृष्टिसम्पन्न दण्डकों में चार-चार क्रियाएं जाननी चाहिए। (विकलेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि होने से उनमें पांचवीं मिथ्यादर्शनक्रिया नियम से होती है, अतः उनका वर्जन किया गया है) (६२०)। गुण-सूत्र ६२१– चउहिं ठाणेहिं संते गुणे णासेजा, तं जहा–कोहेणं, पडिणिवेसेणं, अकयण्णुयाए,
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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