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चतुर्थ स्थान– चतुर्थ उद्देश फिर भी अमित्र है।
पूर्वकाल और उत्तरकाल की अपेक्षा से भी चारों भंग घटित हो सकते हैं, जैसे१.कोई पूर्वकाल में भी मित्र था और आगे भी मित्र रहेगा। २. कोई पूर्वकाल में तो मित्र था, वर्तमान में भी मित्र है, किन्तु आगे अमित्र हो जायेगा। ३. कोई वर्तमान में अमित्र है, किन्तु आगे मित्र हो जायेगा। ४. कोई वर्तमान में भी अमित्र है और आगे भी अमित्र रहेगा (६१०)।
६११- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा मित्ते णाममेगे मित्तरूवे, मित्ते णाममेगे अमितरूवे, अमित्ते णाममेगे मित्तरूवे, अमित्ते णाममेगे अमित्तरूवे।
पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. मित्र और मित्ररूप- कोई पुरुष मित्र होता है और उसका व्यवहार भी मित्र के समान होता है। २. मित्र और अमित्ररूप- कोई पुरुष मित्र होता है, किन्तु उसका व्यवहार अमित्र के समान होता है। ३. अमित्र और मित्ररूप- कोई पुरुष अमित्र होता है, किन्तु उसका व्यवहार मित्र के समान होता है।
४. अमित्र और अमित्ररूप- कोई पुरुष अमित्र होता है और उसका व्यवहार भी अमित्र के समान होता है (६११)। मुक्त-अमुक्त-सूत्र
६१२- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा मुत्ते णाममेगे मुत्ते, मुत्ते णाममेगे अमुत्ते, अमुत्ते णाममेगे मुत्ते, अमुत्ते णाममेगे अमुत्ते।
पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे- .
१. मुक्त और मुक्त– कोई साधु पुरुष परिग्रह का त्यागी होने से द्रव्य से भी मुक्त होता है और परिग्रहादि में आसक्ति का अभाव होने से भाव से भी मुक्त होता है।
२. मुक्त और अमुक्त- कोई दरिद्र पुरुष परिग्रह से रहित होने के कारण द्रव्य से मुक्त है, किन्तु उसकी लालसा बनी रहने से अमुक्त है।
३. अमुक्त और मुक्त– कोई पुरुष द्रव्य से अमुक्त होता है, किन्तु भाव से भरतचक्री के समान मुक्त होता है।
४. अमुक्त और अमुक्त- कोई पुरुष न द्रव्य से ही मुक्त होता है और न भाव से ही मुक्त होता है, जैसे—लोभी श्रीमन्त (६१२)।
६१३– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा मुत्ते णाममेगे मुत्तरूवे, मुत्ते णाममेगे अमुत्तरूवे, अमुत्ते णाममेगे मुत्तरूवे, अमुत्ते णाममेगे अमुत्तरूवे।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. मुक्त और मुक्तरूप— कोई पुरुष परिग्रहादि से मुक्त होता है और उसका रूप बाह्य स्वरूप से भी मुक्तवत् होता है। जैसे— वह सुसाधु जिसके मुखमुद्रा से वैराग्य झलकता हो।
२. मुक्त और अमुक्तरूप- कोई पुरुष परिग्रहादि से मुक्त होता है, किन्तु उसका रूप अमुक्त के समान होता