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________________ ४१८ णोअसंजया । सर्व जीव चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. मनोयोगी, २. वचनयोगी, ३. काययोगी, ४. अयोगी जीव । अथवा सर्व जीव चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. स्त्रीवेदी, २. पुरुषवेदी, ३. नपुंसकवेदी, ४. अवेदीजीव "अथवा सर्व जीव चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. चक्षुदर्शनी, २. अचक्षुदर्शन, ३. अवधिदर्शनी, ४. केवलदर्शनी जीव । अथवा सर्व जीव चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. संयत, २. असंयत, ३. संयतासंयत, ४. नोसंयत - नोअसंयत जीव (६०९) । विवेचन प्रस्तुत सूत्र में प्रतिपादित चौथे भेद का अर्थ इस प्रकार है— १. अयोगी जीव― चौदहवें गुणस्थानवर्ती और सिद्ध जीव । २. अवेदी जीव नौवें गुणस्थान के अवेदभाग से ऊपर के सभी गुणस्थान वाले और सिद्ध जीव । ३. नोसंयत- नोअसंयत जीव— सिद्ध जीव । मित्र- अमित्र-सूत्र ६१०- - चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, अमित्ते णाममेगे मित्ते, अमित्ते णाममेगे अमित्ते । स्थानाङ्गसूत्रम् पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. मित्र और मित्र २. मित्र और अमित्र ३. अमित्र और मित्र ४. अमित्र और अमित्र जहा मित्ते णाममेगे मित्ते, मित्ते णाममेगे अमित्ते, कोई पुरुष व्यवहार से भी मित्र होता है और हृदय से भी मित्र होता है। कोई पुरुष व्यवहार से मित्र होता है, किन्तु हृदय से मित्र नहीं होता । कोई पुरुष व्यवहार से मित्र नहीं होता, किन्तु हृदय से मित्र होता है। कोई पुरुष न व्यवहार से मित्र होता है और न हृदय से मित्र होता है ( ६१० ) । विवेचन- इस सूत्र द्वारा प्रतिपादित चारों प्रकार के मित्रों की व्याख्या अनेक प्रकार से की जा सकती है। जैसे १. कोई पुरुष इस लोक का उपकारी होने से मित्र है और परलोक का भी उपकारी होने से मित्र है । जैसे सद्गुरु आदि । २. कोई इस लोक का उपकारी होने से मित्र है, किन्तु परलोक के साधक संयमादि का पालन न करने देने से अमित्र है। जैसे पत्नी आदि । ३. कोई प्रतिकूल व्यवहार करने से अमित्र है, किन्तु वैराग्य उत्पादक होने से मित्र है। जैसे कलहकारिणी स्त्री आदि । ४. कोई प्रतिकूल व्यवहार करने से अमित्र है और संक्लेश पैदा करने से दुर्गति का भी कारण होता है अतः
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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