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चतुर्थ स्थान- चतुर्थ उद्देश लेसणता।
आत्मसंचेतनीय उपसर्ग चार प्रकार का कहा गया है, जैसे१. घट्टनता-जनित- आंख में रज-कण चले जाने पर उसे मलने से होने वाला कष्ट । २. प्रपतन-जनित- मार्ग में चलते हुए असावधानी से गिर पड़ने का कष्ट। ३. स्तम्भन-जनित — हस्त-पाद आदि के शून्य हो जाने से उत्पन्न हुआ कष्ट।
४. श्लेषणता-जनित — सन्धिस्थलों के जुड़ जाने से होने वाला कष्ट (६०१)। .. कर्म-सूत्र
___६०२- चउव्विहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा—सुभे णाममेगे सुभे, सुभे णाममेगे असुभे, असुभे णाममेगे सुभे, असुभे णाममेगे असुभे।
कर्म चार प्रकार का कहा गया है, जैसे१. शुभ और शुभ- कोई पुण्यकर्म शुभप्रकृति वाला होता है और शुभानुबंधी भी होता है। २. शुभ और अशुभ– कोई पुण्यकर्म शुभप्रकृति वाला किन्तु अशुभानुबंधी होता है। ३. अशुभ और शुभ- कोई पापकर्म अशुभ प्रकृति वाला, किन्तु शुभानुबंधी होता है। ४. अशुभ और अशुभ- कोई पापकर्म अशुभ प्रकृतिवाला और अशुभानुबंधी होता है (६०२)।
विवेचन— कमों के मूल भेद आठ हैं, उनमें चार घातिकर्म तो अशुभ या पापरूप ही कहे गये हैं। शेष चार अघातिकर्मों के दो विभाग हैं। उनमें सातावेदनीय, शुभ आयु, उच्च गोत्र और पंचेन्द्रिय जाति, उत्तम संस्थान, स्थिर, सुभग, यश:कीर्ति आदि नाम कर्म की ६८ प्रकृतियां पुण्य रूप और शेष पापरूप कही गई हैं। प्रकृत में शुभ और पुण्य को तथा अशुभ और पाप को एकार्थ जानना चाहिए।
सूत्र में जो चार भंग कहे गये हैं, उनका खुलासा इस प्रकार है
१. कोई पुण्यकर्म वर्तमान में भी उत्तम फल देता है और शुभानुबन्धी होने से आगे भी सुख देने वाला होता है। जैसे भरत चक्रवर्ती आदि का पुण्यकर्म।
२. कोई पुण्यकर्म वर्तमान में तो उत्तम फल देता है, किन्तु पापानुबन्धी होने से आगे दुःख देने वाला होता है। जैसे— ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती आदि का पुण्यकर्म।
३. कोई पापकर्म वर्तमान में तो दुःख देता है, किन्तु आगे सुखानुबन्धी होता है। जैसे दुखित अकामनिर्जरा करने वाले जीवों का नवीन उपार्जित पुण्य कर्म।
४. कोई पापकर्म वर्तमान में भी दुःख देता है और पापानुबन्धी होने से आगे भी दुःख देता है। जैसे— मछली मारने वाले धीवरादि का पापकर्म।
६०३- चउविहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा सुभे णाममेगे सुभविवागे, सुभे णाममेगे असुभविवागे, असुभे णाममेगे सुभविवागे, असुभे णाममेगे असुभविवागे।
पुनः कर्म चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. शुभ और शुभविपाक- कोई कर्म शुभ होता है और उसका विपाक भी शुभ होता है।