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________________ ४१३ चतुर्थ स्थान– चतुर्थ उद्देश हिययमपावमकलुसं, जीहाऽवि य कडुयभासिणी णिच्चं । जम्मि पुरिसम्मि विजति, से मधुकुंभे विसपिहाणे ॥ २॥ जं हिययं कलुसमयं जीहाऽवि य मधुरभासिणी णिच्चं । जम्मि पुरिसम्मि विजति, से विसकुंभे महुपिहाणे ॥ ३॥ जं हिययं कलुसमयं, जीहाऽवि य कडुयभासिणी णिच्चं। जम्मि पुरिसम्मि विज्जति, से विसकुंभे विसपिहाणे ॥ ४॥ कुम्भ चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. मधुकुम्भ, मधुपिधान— कोई कुम्भ मधु से भरा होता है और उसका पिधान (ढक्कन) भी मधु का ही होता है। २. मधुकुम्भ, विषपिधान- कोई कुम्भ मधु से भरा रहता है, किन्तु उसका ढक्कन विष का होता है। ३. विषकुम्भ, मधुपिधान– कोई कुम्भ विष से भरा होता है, किन्तु उसका ढक्कन मधु का होता है। ४. विषकुम्भ, विषपिधान-कोई कुम्भ विष से भरा होता है और उसका ढक्कन भी विष का ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. मधुकुम्भ, मधुपिधान– कोई पुरुष हृदय से मधु जैसा मिष्ट होता है और उसकी जिह्वा भी मिष्टभाषिणी होती है। २. मधुकुम्भ, विषपिधान— कोई पुरुष हृदय से तो मधु जैसा मिष्ट होता है, किन्तु उसकी जिह्वा विष जैसी कटुभाषिणी होती है। ३. विषकुम्भ, मधुपिधान- किसी पुरुष के हृदय में तो विष भरा होता है, किन्तु उसकी जिह्वा मिष्टभाषिणी होती है। ४. विषकुम्भ, विषपिधान— किसी पुरुष के हृदय में विष भरा होता है और उसकी जिह्वा भी विष जैसी कटुभाषिणी होती है। १. जिस पुरुष का हृदय पाप से रहित होता है और कलुषता से रहित होता है तथा जिस की जिह्वा भी सदा मधुरभाषिणी होती है, वह पुरुष मधु से भरे और मधु के ढक्कन वाले कुम्भ के समान कहा गया है। २. जिस पुरुष का हृदय पाप-रहित और कलुषता-रहित होता है, किन्तु जिस की जिह्वा सदा कटु-भाषिणी होती है, वह पुरुष मधभत. किन्त विषपिधान वाले कम्भ के समान कहा गया है। ___३. जिस पुरुष का हृदय कलुषता से भरा हो, किन्तु जिसकी जिह्वा सदा मधुरभाषिणी है वह पुरुष विष-भृत और मधु-पिधान वाले कुम्भ के समान है। ४. जिस पुरुष का हृदय कलुषता से भरा है और जिसकी जिह्वा भी सदा कटुभाषिणी है, वह पुरुष विष-भृत और विष-पिधान वाले कुम्भ के समान है (५९६)। उपसर्ग-सूत्र ५९७ - चउव्विहा उवसग्गा पण्णत्ता, तं जहा—दिव्वा, माणुसा, तिरिक्खजोणिया,
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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