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________________ ४१२ स्थानाङ्गसूत्रम् ४. तुच्छ और विष्यन्दक- कोई कुम्भ अपूर्ण होता है और झरता भी नहीं है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. पूर्ण और विष्यन्दक–कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुतादि से पूर्ण होता है और उपकारादि करने से विष्यन्दक भी होता है। २. पूर्ण और अविष्यन्दक— कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुतादि से पूर्ण होने पर भी उसका उपकारादि में उपयोग न करने से अविष्यन्दक होता है। ३. तुच्छ और विष्यन्दक— कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुतादि से अपूर्ण होने पर भी प्राप्त अर्थ को उपकारादि में लगाने से विष्यन्दक भी होता है। ४. तुच्छ और अविष्यन्दक— कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुतादि से अपूर्ण होता है और अविष्यन्दक भी होता है (५९४)। चारित्र-सूत्र ५९५- चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा—भिण्णे, जजरिए, परिस्साई, अपरिस्साई। एवामेव चउव्विहे चरित्ते पण्णत्ते, तं जहा–भिण्णे, (जजरिए, परिस्साई), अपरिस्साई। कुम्भ चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. भिन्न (फूटा) कुम्भ, २. जर्जरित (पुराना) कुम्भ, ३. परिस्रावी (झरने वाला) कुम्भ, ४. अपरिस्रावी (नहीं झरने वाला) कुम्भ। इसी प्रकार चारित्र भी चार प्रकार का कहा गया है, जैसे१. भिन्न चारित्र- मूल प्रायश्चित्त के योग्य। २. जर्जरित चारित्र—छेद प्रायश्चित्त के योग्य। ३. परिस्रावी चारित्र- सक्षम अतिचार वाला। ४. अपरिस्रावी चारित्र-निरतिचार—सर्वथा निर्दोष चारित्र (५९५)। मधु-विष-सूत्र ५९६- चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा महुकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, महुकुंभे णाममेगे विसपिहाणे, विसकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, विसकुंभे णाममेगे विसपिहाणे। ___ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—महुकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, महुकुंभे णाममेगे विसपिहाणे, विसकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, विसकुंभे णाममेगे विसपिहाणे। संग्रहणी-गाथाएं हिययमपावमकलुसं, जीहाऽविय महुरभासिणी णिच्चं । जम्मि पुरिसम्मि विज्जति, से मधुकुंभे मधुपिहाणे ॥ १॥
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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