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________________ [४] स्थानांगसूत्र के सूत्र २८२ में चार विकथा और विकथाओं के प्रकार का विस्तार से निरूपण है। वैसा वर्णन समवायांग२८ और प्रश्नव्याकरण२९ में भी मिलता है। स्थानांगसूत्र२२० के ३५६वें सूत्र में चार संज्ञाओं और उनके विविध प्रकारों का वर्णन है। वैसा ही वर्णन समवायांग, प्रश्नव्याकरण२२१ और प्रज्ञापना२२२ में भी प्राप्त है। __ स्थानांगसूत्र२२३ के ३८६वें सूत्र में अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा के चार-चार ताराओं का वर्णन है। वही वर्णन समवायांग२२४, सूर्यप्रज्ञप्ति२२५ आदि में भी है। स्थानांगसूत्र२६ के ६३४वें सूत्र में मगध का योजन आठ हजार धनुष का बताया है। वही वर्णन समवायांग२२० में भी है। तुलनात्मक अध्ययन : बौद्ध और वैदिक ग्रन्थ स्थानांग के अन्य अनेक सूत्रों में आये हुये विषयों की तुलना अन्य आगमों से भी की जा सकती है। किन्तु विस्तारभय से हमने संक्षेप में ही सूचन किया है। अब हम स्थानांग के विषयों की तुलना बौद्ध और वैदिक ग्रन्थों के साथ कर रहे हैं। जिससे यह परिज्ञात हो सके कि भारतीय संस्कृति कितनी मिली-जुली रही है। एक संस्कृति का दूसरी संस्कृति पर कितना प्रभाव रहा है। स्थानांग२२८ में बताया है कि छह कारणों से आत्मा उन्मत्त होता है। अरिहंत का अवर्णवाद करने से, धर्म का अवर्णवाद करने से, चतुर्विध संघ का अवर्णवाद करने से, यक्ष के आवेश से, मोहनीय कर्म के उदय से, तो तथागत बुद्ध ने भी अंगुत्तरनिकाय२२९ में कहा है-चार अचिन्तनीय की चिन्ता करने से मानव उन्मादी हो जाता है-(१) तथागत बुद्ध भगवान् के ज्ञान का विषय, (२) ध्यानी के ध्यान का विषय, (३) कर्मविपाक, (४) लोकचिन्ता। स्थानांग में जिन कारणों से आत्मा के साथ कर्म का बन्ध होता है, उन्हें आश्रव कहा है। मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और योग ये आश्रव हैं। बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय२३९ में आश्रव का मूल "अविद्या" बताया है। अविद्या के निरोध से आश्रव का अपने आप निरोध होता है। आश्रव के कामाश्रव, भवाश्रव, अविद्याश्रव ये तीन भेद किये हैं। मज्झिमनिकाय२३२ के अनुसार मन, वचन और काय की क्रिया को ठीक-ठीक करने से आश्रव रुकता है। आचार्य उमास्वाति२३३ ने भी काय-वचनं २१७. स्थानांग, अ. ४, उ. २, सूत्र २८२ २१८. प्रश्नव्याकरण, ५ वाँ संवरद्वार २१९. समवायांग, सम.४, सूत्र ४ २२०. स्थानांगसूत्र, अ. ४, उ. ४, सूत्र ३५६ २२१. समवायांग, सम. ४, सूत्र ४ २२२. प्रज्ञापनासूत्र, पद ८ २२३. स्थानांगसूत्र, अ. ४, सूत्र ४८६ २२४. समवायांग, सम. ४, सूत्र ७ २२५. सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा. १०, प्रा. ९, सूत्र ४२ २२६. स्थानांगसूत्र, अ.८, उ. १, सूत्र ६३४ २२७. समवायांगसूत्र, सम. ४, सूत्र ६ २२८. स्थानांग, स्थान ६ २२९. अंगुत्तरनिकाय, ४-७७ २३०. स्थानांग, स्था. ५, सूत्र ४१८ २३१. अंगुत्तरनिकाय, ३-५८, ६-६३ २३२. मज्झिमनिकाय, १-१-२ २३३. तत्त्वार्थसूत्र, अ. ६, सूत्र १, २
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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