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________________ और मन की क्रिया को योग कहा है वही आश्रव है। ___ स्थानांगसूत्र में विकथा के स्त्रीकथा, भक्तकथा, देशकथा, राजकथा, मृदुकारुणिककथा, दर्शनभेदिनीकथा और चारित्रभेदनीकथा, ये सात प्रकार बताये हैं।२३४ बुद्ध ने विकथा के स्थान पर 'तिरच्छान' शब्द का प्रयोग किया है। उसके राजकथा, चोरकथा, महामात्यकथा, सेनाकथा, भयकथा, युद्धकथा, अन्नकथा, पानकथा, वस्त्रकथा, शयनकथा, मालाकथा, गन्धकथा, ज्ञातिकथा, यानकथा, ग्रामकथा, निगमकथा, नगरकथा, जनपदकथा, स्त्रीकथा आदि अनेक भेद किये हैं।२३५ स्थानांग२३६ में राग और द्वेष से पाप कर्म का बन्ध बताया है। अंगुत्तरनिकाय२३७ में तीन प्रकार से कर्मसमुदय माना है लोभज, दोषज और मोहज। इनमें भी सबसे अधिक मोहज को दोषजनक माना है ।२३८ स्थानांग२३९ में जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपोमद, श्रुतमद, लाभमद और ऐश्वर्यमद ये आठ मदस्थान बताये हैं, तो अंगुत्तरनिकाय में मद के तीन प्रकार बताये हैं-यौवन, आरोग्य और जीवितमद। इन मदों से मानव दुराचारी बनता है। स्थानांगर में आश्रव के निरोध को संवर कहा है और उसके भेद-प्रभेदों की चर्चा भी की गयी है। तथागत बुद्ध ने अंगुत्तरनिकाय में कहा है कि आश्रव का निरोध केवल संवर से ही नहीं होता प्रत्युत२३ (१) संवर से, (२) प्रतिसेवना से, (३) अधिवासना से, (४) परिवर्जन से, (५) विनोद से, (६) भावना से होता है, इन सभी में भी अविद्यानिरोध को ही मुख्य आश्रवनिरोध माना है। स्थानांग" में अरिहन्त, सिद्ध, साधु, धर्म इन चार शरणों का उल्लेख है, तो बुद्ध ने 'बुद्धं सरणं गच्छामि, धम्म सरणं गच्छामि, संघं सरणं गच्छामि' इन तीन को महत्त्व दिया है। स्थानांगरेप में श्रमणोपासकों के लिए पांच अणुव्रतों का उल्लेख है तो अंगुत्तरनिकाय में बौद्ध उपासकों के लिये पाँच शाल का उल्लेख है । प्राणातिपातविरमण, अदत्तादानविरमण, कामभोगमिथ्याचार से विरमण, मृषावाद से विरमण, सरा-मेरिय मद्य-प्रमाद स्थान से विरमण। स्थानांग२७ में प्रश्न के छह प्रकार बताये हैं-संशयप्रश्न, मिथ्याभिनिवेशप्रश्न, अनुयोगी प्रश्न, अनुलोमप्रश्न, जानकर किया गया प्रश्न, न जानने से किया गया प्रश्न। अंगुत्तरनिकाय२८ में बुद्ध ने कहा-'कितने ही प्रश्न ऐसे होते हैं, जिनके एक अंश का उत्तर देना चाहिये। कितने ही प्रश्न ऐसे होते हैं जिनका प्रश्नकर्ता से प्रतिप्रश्न कर उत्तर देना चाहिए। कितने ही प्रश्न २३४. स्थानांगसूत्र, स्थान ७, सूत्र ५६९ २३५. अंगुत्तरनिकाय, १०, ६९ २३६. स्थानांग ९६ २३७. अंगुत्तरनिकाय ३/३ २३८. अंगुत्तरनिकाय ३/९७, ३/३९ २३९. स्थानांग ६०६ २४०. अंगुत्तरनिकाय ३/३९ २४१. स्थानांग ४२७ २४२. अंगुत्तरनिकाय ६/५८ २४३. अंगुत्तरनिकाय ६/६३ २४४. स्थानांगसूत्र ४ २४५. स्थानांग, स्थान ५ २४६. अंगुत्तरनिकाय, ८-२५ २४७. स्थानांग, स्थान ६, सूत्र ५३४ २४८. अंगुत्तरनिकाय-४२
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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