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________________ ३९० स्थानाङ्गसूत्रम् १. श्वपाक-करण्डक समान, २. वेश्या-करण्डक समान, ३. गृहपति-करण्डक समान, ४. राज-करण्डक समान (५४१)। विवेचन करण्डक का अर्थ पिटारा या पिटारी है। आज भी यह वांस की शलाकाओं से बनाया जाता है। किन्तु प्राचीन काल में जब आज के समान लोहे और स्टील से निर्मित सन्दूक-पेटी आदि का विकास नहीं हुआ था तब सभी वर्गों के लोग वांस से बने करण्डकों में ही अपना सामान रखते थे। उक्त चारों प्रकार के करण्डकों और उनके समान बताये गये आचार्यों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है १. जैसे श्वपाक (चाण्डाल, चर्मकार) आदि के करण्डक में चमड़े को छीलने-काटने आदि के उपकरणों और चमड़े के टुकड़ों आदि के रखे रहने से वह असार या निकृष्ट कोटि का माना जाता है, उसी प्रकार जो आचार्य केवल षट्काय-प्रज्ञापक गाथादिरूप अल्पसूत्र का धारक और विशिष्ट क्रियाओं से रहित होता है, वह आचार्य श्वपाक-करण्डक के समान है। २. जैसे वेश्या का करण्डक लाख भरे सोने के दिखाऊ आभूषणों से भरा होता है, वह श्वपाक-करण्डक से अच्छा है, वैसे ही जो आचार्य अल्पश्रुत होने पर भी अपने वचनचातुर्य से मुग्धजनों को आकर्षित करते हैं, उनको वेश्या-करण्डक के समान कहा गया है। ऐसा आचार्य श्वपाक-करण्डक-समान आचार्य से अच्छा है। ३. जैसे किसी गृहपति या सम्पन्न गृहस्थ का करण्डक सोने-मोती आदि के आभूषणों से भरा रहता है, वैसे ही जो आचार्य स्व-समय, पर-समय के ज्ञाता और चारित्रसम्पन्न होते हैं, उन्हें गृहपति-करण्डक के समान कहा गया है। ४. जैसे राजा का करण्डक मणि-माणिक आदि बहुमूल्य रत्नों से भरा होता है, उसी प्रकार जो आचार्य अपने पद के योग्य सर्वगुणों से सम्पन्न होते हैं, उन्हें राज-करण्डक के समान कहा गया है। .. उक्त चारों प्रकार के करण्डकों के समान चारों प्रकार के आचार्य क्रमशः असार, अल्पसार, सारवान् और सर्वश्रेष्ठ सारवान् जानना चाहिए। ५४२- चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा साले णाममेगे सालपरियाए, साले णाममेगे एरंडपरियाए, एरंडे णाममेगे सालपरियाए, एरंडे णाममेगे एरंडपरियाए। एवामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा—साले णाममेगे सालपरियाए, साले णाममेगे एरंडपरियाए, एरंडे णाममेगे सालपरियाए, एरंडे णाममेगे एरंडपरियाए। चार प्रकार के वृक्ष कहे गये हैं, जैसे १. शाल और शाल-पर्याय— कोई वृक्ष शाल जाति का होता है और शाल-पर्याय (विशाल छाया वाला, आश्रयणीयता आदि धर्मों वाला) होता है। २. शाल और एरण्ड-पर्याय— कोई वृक्ष शाल जाति का होता है, किन्तु एरण्ड-पर्याय (एण्रड के वृक्ष के समान अल्प छाया वाला) होता है। ३. एरण्ड और शाल-पर्याय- कोई वृक्ष एरण्ड के समान छोटा, किन्तु शाल के समान विशाल छाया वाला होता है।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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