SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 458
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९१ ४. एरण्ड और एरण्ड-पर्याय— कोई वृक्ष एरण्ड के समान छोटा और उसी के समान अल्प छाया वाला होता है। चतुर्थ स्थान - चतुर्थ उद्देश इसी प्रकर आचार्य भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. शाल और शाल - पर्याय कोई आचार्य शाल के समान उत्तम जाति वाले और उसी के समान धर्म वालेज्ञान, आचार और प्रभावशाली होते हैं। २. शाल और एण्ड - पर्याय— कोई आचार्य शाल के समान उत्तम जाति वाले, किन्तु ज्ञान, आचार और प्रभाव से रहित होते हैं । ३. एरण्ड और शाल - पर्याय— कोई आचार्य जाति से एरण्ड के समान हीन किन्तु ज्ञान, आचार और प्रभावशाली होने से शालपर्याय होते हैं । ४. एरण्ड और एरण्ड-पर्याय— कोई आचार्य एरण्ड के समान हीन जाति वाले और उस के समान ज्ञान, आचार और प्रभाव से भी हीन होते हैं (५४२ ) । ५४३ – चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा—साले णाममेगे सालपरिवारे, साले णाममेगे एरंडपरिवारे, एरंडे णाममेगे सालपरिवारे, एरंडे णाममेगे एरंडपरिवारे । एवमेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा साले णाममेगे सालपरिवारे, साले णाममेगे एरंडपरिवारे, एरंडे णाममेगे सालपरिवारे, एरंडे णाममेगे एरंडपरिवारे । संग्रहणी - गाथा सालदुममज्झयारे, जह साले णाम होइ दुमराया । इय सुंदर आयरिए, सुंदरसीसे मुणेयव्वे ॥ १॥ एरंडमज्झयारे, जह साले णाम होइ दुमराया । इय सुंदरआयरिए, मंगुलसीसे मुणेयव्वे ॥ २॥ सालदुममज्झयारे एरंडे णाम होइ दुमराया । इय मंगलआयरिए, सुंदरसीसे मुणेयव्वे ॥ ३॥ एरंडमज्झयारे, एरंडे णाम होइ दुमराया । इस मंगलआयरिए, मंगुलसीसे मुणेयव्वे ॥ ४॥ पुनः वृक्ष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. शाल और शालपरिवार — कोई वृक्ष शाल जाति और शाल परिवार वाला होता है। २. शाल और एरण्डपरिवार — कोई वृक्ष शाल जाति किन्तु एरण्डपरिवार वाला होता है । ३. एरण्ड और शालपरिवार — कोई वृक्ष जाति से एरण्ड किन्तु शालपरिवार वाला होता है। ४. एरण्ड और एरण्डपरिवार — कोई वृक्ष जाति से एरण्ड और एरण्डपरिवार वाला होता है । इसी प्रकार आचार्य भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. शाल और शालपरिवार — कोई आचार्य शाल के समान जातिमान् और शालपरिवार के समान उत्तम
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy