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[४२] मिलते हैं। सूत्रकृतांग'६९ और औपपातिक'७० में भी इसका वर्णन हुआ। ____ स्थानांग का तेरहवाँ सूत्र ‘एगे आसवे' चौदहवाँ सूत्र “एगे संवरे" पन्द्रहवाँ सूत्र ‘एगा वेयणा' और सोलहवाँ सूत्र "एगा निर्जरा" हैं। यही पाठ समवायांग'७२ में मिलता है और सूत्रकृतांगण और औपपातिक' में भी इन विषयों का इस रूप में निरूपण हुआ है।
स्थानांग सूत्र के पचपनवें सूत्र में आर्द्रा नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र का वर्णन है। वही वर्णन समवायांग२७६ और सूर्यप्रज्ञप्ति में भी है।
स्थानांगर७८ के सूत्र तीन सौ अट्ठावीस में अप्रतिष्ठान नरक, जम्बूद्वीप, पालकयानविमान आदि का वर्णन है। उसकी तुलना समवायांग के उन्नीस, बीस, इकवीस और बावीसवें सूत्र से की जा सकती है, और साथ ही जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति८० और प्रज्ञापना८१ पद से भी।
स्थानांग८२ के ९५वें सूत्र में जीव-अजीव आवलिका का वर्णन है। वही वर्णन समवायांग८३, प्रज्ञापना, जीवाभिगम८५, उत्तराध्ययन में है।
स्थानांग८७ के सूत्र ९६ में बन्ध आदि का वर्णन है। वैसा वर्णन प्रश्नव्याकरण८८, प्रज्ञापना८९, और उत्तराध्ययन सूत्र में भी है।
स्थानांगसूत्र के ११०वें सूत्र में पूर्व भाद्रपद आदि के तारों का वर्णन है तो सूर्यप्रज्ञप्ति९२ और समवायांग९९३ में भी यह
१६९. सूत्रकृतांगसूत्र, श्रु. २, अ.५ १७०. औपपातिकसूत्र ३४ १७१. स्थानांगसूत्र, अ. १, सूत्र १३, १४, १५, १६ १७२. समवायांगसूत्र, सम. १, सूत्र १५, १६, १७, १८ १७३. सूत्रकृतांगसूत्र, श्रुत. २, अ.५ १७४. औपपातिकसूत्र ३४ १७५. स्थानांगसूत्र, सूत्र ५५ १७६. समवायांगसूत्र, २३, २४, २५ १७७. सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा. १०, प्रा. ९ १७८. स्थानांगसूत्र, सूत्र ३२८ १७९. समवायांगसूत्र, सम. १, सूत्र १९, २०, २१, २२ १८०. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, वक्ष १, सूत्र ३ १८१. प्रज्ञापनासूत्र, पद २ १८२. स्थानांगसूत्र, अ. ४, उ. ४, सूत्र ९५ १८३. समवायांगसूत्र, १४९ १८४. प्रज्ञापना, पद १, सूत्र १ १८५. जीवाभिगम, प्रति. १, सूत्र १ १८६. उत्तराध्ययन, अ. ३६ १८७. स्थानांगसूत्र, अ. २, उ. ४, सूत्र ९६ १८८. प्रश्सव्याकरण, ५ वाँ १८९. प्रज्ञापना, पद २३ १९०. उत्तराध्ययन सूत्र, अ. ३१ १९१. स्थानांगसूत्र, अ. २, उ. ४, सूत्र ११० १९२. सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा. १०, प्रा. ९, सूत्र ४२ १९३. समवायांगसूत्र, सम. २, सूत्र ५