________________
[४१] प्रज्ञापना में भी क्रिया के सम्बन्ध में वर्णन है।
स्थानांग' में पाँचवाँ सूत्र है—"एगे लोए"! समवायांग४८ में भी इसी तरह का पाठ है। भगवती और औपपातिक'५० में भी यही स्वर मुखरित हुआ है।
स्थानांगर में सातवाँ सूत्र है—एगे धम्मे। समवायांग'५२ में भी यह पाठ इसी रूप में मिलता है। सूत्रकृतांग'५३ और. भगवती५४ में भी इसका वर्णन है।
स्थानांगर५५ का आठवाँ सूत्र है-"एगे अधम्मे"। समवायांग१५६ में यह सूत्र इसी रूप में मिलता है। सूत्रकृतांग५७ और भगवती५८ में भी इस विषय को देखा जा सकता है।
स्थानांग५९ का ग्यारहवाँ सूत्र है "एगे पुण्णे"। समवायांग'६० में भी इसी तरह का पाठ है, सूत्रकृतांग६१ और औपपातिक'६२ में भी यह विषय इसी रूप में मिलता है।
स्थानांग६२ का बारहवाँ सूत्र है—"एगे पावे"। समवायांग'६४ में यह सूत्र इसी रूप में आया है। सूत्रकृतांग१६५ और औपपातिक'६६ में भी इसका निरूपण हुआ है।
स्थानांग'६७ का नवम सूत्र ‘एगे बन्धे' है और दशवाँ सूत्र 'एगे मोक्खे' है। समवायांग१६८ में ये दोनों सूत्र इसी रूप में
१४६. प्रज्ञापनासूत्र, पद १६ १४७. स्थानांग, अ. १, सूत्र ५ १४८. समवायांग, सम. १, सूत्र ७ १४९. भगवती, शत. १२, उ. ७, सूत्र ७ १५०. औपपातिक, सूत्र ५६ १५१. स्थानांग, अ. १, सूत्र ७ १५२. समवायांग, सम. १, सूत्र ९ १५३. सूत्रकृतांग, श्रु. २, अ.५ १५४. भगवती, शत. २० उ. २ १५५. स्थानांग, अ. १, सूत्र ८ १५६. समवायांग, सम. १, सूत्र १० १५७. सूत्रकृतांग, श्रु. २, अ.५ १५८. भगवती, शत. २०, उ. २ १५९. स्थानांग, अ. १, सूत्र ११ १६०. समवायांग, सम. १, सूत्र ११ १६१. सूत्रकृतांग, श्रु. २, अ.५ १६२. औपपातिक,सूत्र ३४ १६३. स्थानांगसूत्र, अ. १, सूत्र १२ १६४. समवायांग १, सूत्र १२ १६५. सूत्रकृतांग, श्रु. २, अ.५ १६६. औपपातिक, सूत्र ३४ १६७. स्थानांग, अ. १, सूत्र ९, १० १६८. समवायांगसूत्र १, सम. १, सूत्र १३, १४