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________________ चतुर्थ स्थान– चतुर्थ उद्देश ३७९ ३. श्लेष्मिक- कफ के विकार से उत्पन्न होने वाली व्याधि । ४. सान्निपातिक— वात, पित्त और कफ के सम्मिलित विकार से उत्पन्न होने वाली व्याधि (५१५)। ५१६- चउव्विहा तिगिच्छा पण्णत्ता, तं जहा विज्जो, ओसधाई, आउरे, परियारए। चिकित्सा के चार अंग होते हैं, जैसे१. वैद्य, २. औषध, ३. आतुर (रोगी), ४. परिचारक (परिचर्या करने वाला) (५१६)। ५१७ – चत्तारि तिगिच्छगा पण्णत्ता, तं जहा आततिगिच्छए णाममेगे णो परतिगिच्छए, परतिगिच्छए णाममेगे णो आततिगिच्छए, एगे आततिगिच्छएवि परतिगिच्छएवि, एगे णो आततिगिच्छए णो परतिगिच्छए। चिकित्सक (वैद्य) चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. आत्म-चिकित्सक, न पर-चिकित्सक कोई वैद्य अपना इलाज करता है, किन्तु दूसरे का इलाज नहीं करता। २. पर-चिकित्सक, न आत्म-चिकित्सक कोई वैद्य दूसरे का इलाज करता है किन्तु अपना इलाज नहीं करता। ३. आत्म-चिकित्सक भी, पर-चिकित्सक भी— कोई वैद्य अपना भी इलाज करता है और दूसरे का भी इलाज करता है। ४. न आत्म-चिकित्सक, न पर-चिकित्सक कोई वैद्य न अपना इलाज करता है और न दूसरे का ही इलाज करता है (५१७)। व्रणकर-सूत्र ५१८ – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—वणकरे णाममेगे णो वणपरिमासी, वणपरिमासी णाममेगे णो वणकरे, एगे वणकरेवि वणपरिमासीवि, एगे णो वणकरे णो वणपरिमासी। व्रणकर (घाव करने वाले) पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. व्रणकर, न व्रण-परामर्शी- कोई पुरुष रक्त, राध आदि निकालने के लिए व्रण (घाव) करता है, किन्तु उसका परिमर्श (सफाई, धोना आदि) नहीं करता। २. व्रण-परामर्शी, न व्रणकर- कोई पुरुष व्रण का परिमर्श करता है, किन्तु व्रण नहीं करता। ३. व्रणकर भी, व्रण-परामर्शी भी— कोई पुरुष व्रणकर भी होता है और व्रण-परिमर्शी भी होता है। ४. न व्रणकर, न व्रण-परिमर्शी— कोई पुरुष न व्रणकर ही होता है और न व्रण-परामर्शी ही होता है' (५१८)। ५१९– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—वणकरे णाममेगे णो वणसारक्खी, वणसारक्खी १. व्रण के दो भेद हैं-द्रव्य व्रण शरीर सम्बन्धी घाव और भाव व्रण स्वीकृत व्रत में होने वाला अतिचार। भावपक्ष में परामर्शी का अर्थ है-स्मरण करने वाला। इत्यादि व्याख्या यथायोग्य समझ लेनी चाहिए।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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