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________________ ३८० स्थानाङ्गसूत्रम् णाममेगे णो वणकरे, एगे वणकरेवि वणसारक्खीवि, एगे णो वणकरे णो वणसारक्खी। पुनः (व्रणकर) पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. व्रणकर, न व्रणसंरक्षी— कोई पुरुष व्रण करता है, किन्तु व्रण को पट्टी आदि बाँध कर उसका संरक्षण नहीं करता। २. व्रणसंरक्षी, न व्रणकर- कोई पुरुष व्रण का संरक्षण करता है, किन्तु व्रण नहीं करता। ३. व्रणकर भी, व्रणसंरक्षी भी- कोई पुरुष व्रण करता भी है और उसका संरक्षण भी करता है। ४. न व्रणकर, न व्रणसंरक्षी— कोई पुरुष न व्रण ही करता है और न उसका संरक्षण ही करता है (५१९)। ५२०- चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—वणकरे णाममेगे णो वणसरोही, वणसरोही णाममेगे णो वणकरे, एगे वणकरेवि वणसरोहीवि, एगे णो वणकरे णो वणसरोही। पुनः (व्रणकर) पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. व्रणकर, न व्रणसंरोही- कोई पुरुष व्रण करता है, किन्तु व्रणरोही नहीं होता। (उसमें औपधि लगाकर उसे भरता नहीं है।) २. व्रणरोही, न व्रणकर— कोई पुरुष व्रणसंरोही होता है, किन्तु व्रणकर नहीं होता। ३. व्रणकर भी, व्रणसंरोही भी- कोई पुरुष व्रणकर भी होता है और व्रणरोही भी होता है। ४. न व्रणकर, न व्रणरोही- कोई पुरुष न व्रणकर होता है, न व्रणरोही ही होता है (५२०)। अन्तर्बहिण-सूत्र ५२१– चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहा—अंतोसल्ले णाममेगे णो बाहिंसल्ले, बाहिंसल्ले णाममेगे णो अंतोसल्ले, एगे अंतोसल्लेवि बाहिंसल्लेवि, एगे णो अंतोसल्ले णो बाहिंसल्ले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–अंतोसल्ले णाममेगे णो बाहिंसल्ले, बाहिंसल्ले णाममेगे णो अंतोसल्ले, एगे अंतोसल्लेवि बाहिंसल्लेवि, एगे णो अंतोसल्ले णो बाहिंसल्ले। व्रण चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. अन्तःशल्य, न बहि:शल्य- कोई व्रण अन्तःशल्य (भीतरी घाव वाला) होता है, बहि:शल्य (बाहरी घाव वाला) नहीं होता। २. बहि:शल्य, न अन्तःशल्य- कोई व्रण बहि:शल्य होता है, अन्तःशल्य नहीं होता। ३. अन्तःशल्य भी, बहि:शल्य भी- कोई व्रण अन्तःशल्य भी होता है और बहिःशल्य भी होता है। ४. न अन्तःशल्य, न बहि:शल्य- कोई व्रण न अन्तःशल्य होता है और न बहि:शल्य ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. अन्तःशल्य, न बहि:शल्य- कोई पुरुष भीतरी शल्य वाला होता है, बाहरी शल्य वाला नहीं होता। २. बहि:शल्य, न अन्तःशल्य- कोई पुरुष बाहरी शल्य वाला होता है, भीतरी शल्य वाला नहीं होता। ३. अन्तःशल्य भा, बाहःशल्य भी- कोई पुरु५ नारी सपा की तो है और नादमी पाग वाला भी होता है।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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