SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६० स्थानाङ्गसूत्रम् ४. न जातिसम्पन्न, न कुलसम्पन्न— कोई घोड़ा न जातिसम्पन्न होता है और न कुलसम्पन्न ही होता है (४७०)। ४७१– चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे ४। [बलसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो बलसंपण्णे]। ___ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे ४। [बलसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो बलसंपण्णे]। पुनः घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. जातिसम्पन्न, न बलसम्पन्न— कोई घोड़ा जातिसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। २. बलसम्पन्न, न जातिसम्पन्न – कोई घोड़ा बलसम्पन्न तो होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। ३. जातिसम्पन्न भी, बलसम्पन्न भी— कोई घोड़ा जातिसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है। ४. न जातिसम्पन्न, न बलसम्पन्न – कोई घोड़ा न जातिसम्पन्न ही होता है और न बलसम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. जातिसम्पन्न, न बलसम्पन्न — कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। २. बलसम्पन्न, न जातिसम्पन्न – कोई पुरुष बलसम्पन्न तो होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। ३. जातिसम्पन्न भी, बलसम्पन्न भी— कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है। ४. न जातिसम्पन्न, न बलसम्पन्न— कोई पुरुष न जातिसम्पन्न ही होता है और न बलसम्पन्न ही होता है (४७१)। ४७२- चत्तारि [प ?] कंथगा पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे ४।[रूवसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो रूवसंपण्णे]। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे ४। [रूवसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो रूवसंपण्णे]। पुनः घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. जातिसम्पन्न, न रूपसम्पन्न — कोई घोड़ा जातिसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। २.रूपसम्पन्न, न जातिसम्पन्न – कोई घोड़ा रूपसम्पन्न तो होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। ३. जातिसम्पन्न भी, रूपसम्पन्न भी— कोई घोड़ा जातिसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। ४. न जातिसम्पन्न, न रूपसम्पन्न— कोई घोड़ा न जातिसम्पन्न ही होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. जातिसम्पन्न, न रूपसम्पन्न— कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy