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चतुर्थ स्थान – तृतीय उद्देश
३४९ प्रार्थना करता हुआ और अभिलाषा करता हुआ मन को ऊंचा-नीचा करता है और विनिघात को प्राप्त होता है। यह उसकी दूसरी दुःखशय्या है।
३. तीसरी दुःखशय्या यह है—कोई पुरुष मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हो देवों के और मनुष्य के काम-भोगों का आस्वाद करता है, इच्छा करता है, प्रार्थना करता है, अभिलाषा करता है। वह देवों के और मनुष्यों के काम-भोगों का आस्वाद करता हुआ, इच्छा करता हुआ, प्रार्थना करता हुआ और अभिलाषा करता हुआ मन को ऊंचा-नीचा करता है और विनिघात को प्राप्त होता है। यह उसकी तीसरी दुःखशय्या है।
४. चौथी दुःखशय्या यह है—कोई पुरुष मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुआ। उसको ऐसा विचार होता है जब मैं गृहवास में रहता था, तब मैं संबाधन, परिमर्दन, गात्राभ्यंग और गात्रोत्क्षालन करता था। परन्तु जबसे मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुआ हूं, तब से मैं संबाधन, परिमर्दन, गात्राभ्यंग और गात्रप्रक्षालन नहीं कर पा रहा हूं। ऐसा विचार कर वह संबाधन, परिमर्दन, गात्राभ्यंग और गात्रप्रक्षालन का आस्वाद करता है, इच्छा करता है, प्रार्थना करता है और अभिलाषा करता है। संबाधन, परिमर्दन, गात्राभ्यंग और गात्रोत्क्षालन का आस्वादन करता हुआ, इच्छा करता हुआ, प्रार्थना करता हुआ और अभिलाषा करता हुआ वह अपने मन को ऊंचा-नीचा करता है और विनिघात को प्राप्त होता है। यह उस मुनि की चौथी दु:खशय्या है (४५०)।
विवेचन— चौथी दुःखशय्या में आये हुए कुछ विशिष्ट पदों का अर्थ इस प्रकार है१. संबाधन- शरीर की हड़-फूटन मिटाकर उनमें सुख पैदा करने वाली मालिश करना। २. परिमर्दन – वेसन-तेल मिश्रित पीठी से शरीर का मर्दन करना। ३. गात्राभ्यंग तेल आदि से शरीर की मालिश करना। ४. गात्रोत्क्षालन — वस्त्र से शरीर को रगड़ते हुए जल से स्नान करना।
इन की इच्छा करना भी संयम का विघातक है। सुखशय्या-सूत्र
४५१- चत्तारि सुहसेजाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—
१. तत्थ खलु इमा पढमा सुहसेज्जा से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए णिग्गंथे पावयणे णिस्संकिते णिक्कंखिते णिव्वितिगिच्छए णो भेदसमावण्णे णो कलुससमावण्णे णिग्गंथं पावयणं सद्दहइ पत्तियइ रोएति, णिग्गंथं पावयणं सद्दहमाणे पत्तियमाणे रोएमाणे णो मणं उच्चावयं णियच्छति, णो विणिघातमावज्जति–पढमा सुहसेजा।
२. अहावरा दोच्चा सुहसेजा से णं मुंडे जाव [भवित्ता, अगाराओ अणगारियं] पव्वइए सएणं लाभेणं तुस्सति, परस्स लाभं णो आसाएति णो पीहेति णो पत्थेमि णो अभिलसति, परस्स लाभमणासएमाणे जाव [ अपीहेमाणे अपत्थेमाणे ] अणभिलसमाणे णो मणं उच्चावयं णियच्छति, णो विणिघात-मावजति–दोच्चा सुहसेज्जा।
३. अहावरा तच्चा सुहसेज्जा से णं मुंडे जाव [भवित्ता अगाराओ अणगारियं] पव्वइए दिव्व- माणुस्सए कामभोगे णो आसाइति जाव [णो पीहेति णो पत्थेति ] णो अभिलसति,