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चतुर्थ स्थान - तृतीय उद्देश
चैत्यस्वरूप की पर्युपासना करूं।
३. देवलोक में तत्काल उत्पन्न हुआ, दिव्य काम-भोगों में अमूर्च्छित, अगृद्ध, अग्रथित और अनासक्त देव ऐसा विचार करता है मेरे मनुष्य भव के माता हैं, या पिता हैं, या भाई हैं, या बहिन हैं, या स्त्री है, या पुत्र है, या पुत्रवधू है, अत: मैं जाऊं, उनके सम्मुख प्रकट होऊं, जिससे वे मेरी इस प्रकार की दिव्य देवर्धि, दिव्य देव - द्युति और दिव्य देव - प्रभाव को जो मुझे मिला है, प्राप्त हुआ है और अभिसमन्वागत हुआ है, देखें ।
४. देवलोक में तत्काल उत्पन्न हुआ, दिव्य काम-भोगों में अमूर्च्छित, अगृद्ध, अग्रथित और अनासक्त देव ऐसा विचार करता है— मनुष्यलोक में मेरे मनुष्य भव के मित्र हैं, या सखा हैं, या सुहृत् हैं, या सहायक हैं, या संगतिक हैं, उनका हमारे साथ परस्पर संगार (संकेतरूप प्रतिज्ञा ) स्वीकृत है कि जो मेरे पहले मरणप्राप्त हो वह, दूसरे को सम्बोधित करे ।
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इन चार कारणों से देवलोक में तत्काल उत्पन्न हुआ देव शीघ्र मनुष्यलोक में आने की इच्छा करता है और शीघ्र आने के लिए समर्थ होता है (४३४) ।
विवेचन — इस सूत्र में आये हुए आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, गणी आदि पदों की व्याख्या तीसरे स्थान के सूत्र ३६२ में की जा चुकी है। मित्र आदि पदों का अर्थ इस प्रकार है—
हो 1
१. मित्र जीवन के किसी प्रसंग- विशेष से जिसके साथ स्नेह हुआ २: सखा— बाल-काल में साथ खेलने-कूदने वाला ।
३. सुहृत्— सुन्दर मनोवृत्तिवाला हितैषी, सज्जन पुरुष ।
४. सहायक—–— संकट के समय सहायता करने वाला, निःस्वार्थ व्यक्ति ।
५. संगतिक— जिसके साथ सदा संगति — उठना-बैठना आदि होता रहता है।
ऐसे मित्रादिकों से भी मिलने के लिए देव आने की इच्छा करते हैं और आते भी हैं तथा जिनके साथ पूर्वभव यह प्रतिज्ञा हुई हो कि जो पहले स्वर्ग से च्युत होकर मनुष्य हो और यदि वह काम-भोगों में लिप्त होकर संयम को धारण करना भूल जावे तो उसे सम्बोधने के लिए स्वर्गस्थ देव को आकर उसे प्रबोध देना चाहिए या जो पहले देवलोक में उत्पन्न हो वह दूसरे को प्रतिबोध दे, ऐसा प्रतिज्ञाबद्ध देव भी अपने सांगरिक पुरुष को संबोधना करने के लिए मनुष्यलोक में आता है।
अन्धकार - उद्योतादि सूत्र
४३५— चउहिं ठाणेहिं लोगंधगारे सिया, तं जहा— अरहंतेहिं वोच्छिज्जमाणेहिं, अरहंतपण्णत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे, जायतेजे वोच्छिज्जमाणे ।
चार कारणों से मनुष्यलोक में अन्धकार होता है, जैसे—
१. अर्हन्तों - तीर्थंकरों के विच्छेद हो जाने पर,
२. तीर्थंकरों द्वारा प्ररूपित धर्म के विच्छेद होने पर,
३. पूर्वगत श्रुत के विच्छेद हो जाने पर,
४. जाततेजस् (अग्नि) के विच्छेद हो जाने पर ।