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________________ ३४२ स्थानाङ्गसूत्रम् अणज्झोववण्णे, तस्स णं एवं भवति–अत्थि खलु मम माणुस्सए भवे आयरिएति वा उवज्झाएति वा पवत्तीति वा थेरेति वा गणीति वा गणधरेति वा गणावच्छेदेति वा, जेसिं पभावेणं मए इमा एतारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवजुती [ दिव्वे देवाणुभावे ?] लद्धा पत्ता अभिसमण्णागता तं गच्छामि णं ते भगवंते वंदामि जाव [णमंसामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं ] पज्जुवासामि। २. अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु जाव [दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते ] अणझोववण्णे, तस्स णमेवं भवति–एस णं माणुस्सए भवे णाणीति वा तवस्सीति वा अइदुक्करदुक्करकारगे, तं गच्छामि णं ते भगवंते वंदामि जाव [णमंसामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं ] पज्जुवासामि। ३. अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु जाव [दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते ] अणज्झोववण्णे, तस्स णमेवं भवति–अस्थि णं मम माणुस्सए भवे माताति वा जाव [पियाति वा भायाति वा भगिणीति वा भज्जाति वा पुत्ताति वा धूयाति वा ] सुण्हाति वा, तं गच्छामि णं तेसिमंतियं पाउब्भवामि, पासंतु ता मे इममेतारूवं दिव्वं देविढेि दिव्वं देवजुति [ दिव्वं देवाणुभावं ? ] लद्धं पत्तं अभिसमण्णागत। ४. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु जाव [दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते ] अणज्झोववण्णे, तस्स णमेवं भवति-अत्थि णं मम माणुस्सए भवे मित्तेति वा सहीति वा सुहीति वा सहाएति वा संगइएति वा, तेसिं च णं अम्हे अण्णमण्णस्ण संगारे पडिसुते भवति–जो मे पुलिं चयति से संबोहेतवे। इच्चेतेहिं जाव [ चउहि ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु इच्छेज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए] संचाएति हव्वमागच्छित्तए। चार कारणों से देवलोक में तत्काल उत्पन्न हुआ देव शीघ्र मनुष्यलोक में आने की इच्छा करता है और शीघ्र आने के लिए समर्थ भी होता है, जैसे १. देवलोक में तत्काल उत्पन्न हुआ, दिव्य काम-भोगों में अमूर्च्छित, अगृद्ध, अग्रथित और अनासक्त देव को ऐसा विचार होता है—मनुष्यलोक में मेरे मनुष्यभव के आचार्य हैं या उपाध्याय हैं या प्रवर्तक हैं या स्थविर हैं या गणी हैं या गणधर हैं या गणावच्छेदक हैं; जिनके प्रभाव से मैंने यह इस प्रकार की दिव्य देवर्धि, दिव्य देव-द्युति और दिव्य देवानुभाव लब्ध प्राप्त और अभिसमन्वागत (भोगने के योग्य दशा को प्राप्त) किया है, अतः मैं जाऊं-उन भगवन्तों की वन्दना करूं, नमस्कार करूं, उनका सत्कार करूं, सन्मान करूं और कल्याणरूप, मंगलमय देव चैत्यस्वरूप की पर्युपासना करूं। २. देवलोक में तत्काल उत्पन्न हुआ, दिव्य काम-भोगों में अमूर्च्छित, अगृद्ध, अग्रथित और अनासक्त देव ऐसा विचार करता है—इस मनुष्यभव में ज्ञानी हैं, तपस्वी हैं, अतिदुष्कर घोर तपस्याकारक हैं, अत: मैं जाऊं उन भगवन्तों की वन्दना करूं, नमस्कार करूं, उनका सत्कार करूं, सन्मान करूं और कल्याणरूप, मंगलमय देव
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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