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________________ ३२८ स्थानाङ्गसूत्रम् संपणे ]। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. कुलसम्पन्न, न श्रुतसम्पन्न — कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं होता । २. श्रुतसम्पन्न, न कुलसम्पन्न — कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता । ३. कुलसम्पन्न भी, श्रुतसम्पन्न भी— कोई पुरुष कुलसम्पन्न भी होता है और श्रुतसम्पन्न भी होता है। ४. न कुलसम्पन्न, न श्रुतसम्पन्न — कोई पुरुष न कुलसम्पन्न होता है और न श्रुतसम्पन्न ही होता है (३९८)। ३९९ – [ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा —— कुलसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सीलसंपणे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो सीलसंपणे ] | पुन: पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. कुलसम्पन्न, न शीलसम्पन्न — कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता । २. शीलसम्पन्न, न कुलसम्पन्न — कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता । ३. कुलसम्पन्न भी, शीलसम्पन्न भी— कोई पुरुष कुलसम्पन्न भी होता है और शीलसम्पन्न भी होता है। ४. न कुलसम्पन्न, न शीलसम्पन्न — कोई पुरुष न कुलसम्पन्न होता है और न शीलसम्पन्न ही होता है (३९९) । ४००– [ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा -- कुलसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपणे णो चरित्तसंपण्णे ] | पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. कुलसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न — कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, किन्तु चरित्रसम्पन्न नहीं होता । २. चरित्रसम्पन्न, न कुलसम्पन्न — कोई पुरुष चरित्रसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता । ३. कुलसम्पन्न भी, चरित्रसम्पन्न भी— कोई पुरुष कुलसम्पन्न भी होता है और चरित्र सम्पन्न भी होता है। ४. न कुलसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न — कोई पुरुष न कुलसम्पन्न होता है और न चरित्रसम्पन्न ही होता है ( ४०० ) । बल-सूत्र ४०१ – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—बलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपणे णामगे णो बलसंपणे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे । पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. बलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न — कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता । २. रूपसम्पन्न, न बलसम्पन्न — कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता ३. बलसम्पन्न भी, रूपसम्पन्न भी— कोई पुरुष बलसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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