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________________ चतुर्थ स्थान– तृतीय उद्देश ३२९ ४. न बलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न— कोई पुरुष न बलसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है (४०१)। ४०२- एवं बलेण य सुत्तेण य, एवं बलेण य सीलेण य, एवं बलेण य चरित्तेण य, [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–बलसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, सुयसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो सुयसंपण्णे]। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. बलसम्पन्न, न श्रुतसम्पन्न- कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं होता। २. श्रुतसम्पन्न, न बलसम्पन्न – कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। ३. बलसम्पन्न भी, श्रुतसम्पन्न भी- कोई पुरुष बलसम्पन्न भी होता है और श्रुतसम्पन्न भी होता है। ४. न बलसम्पन्न, न श्रुतसम्पन्न- कोई पुरुष न बलसम्पन्न होता है और न श्रुतसम्पन्न ही होता है (४०२)। ४०३- [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–बलसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सीलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो सीलसंपण्णे]। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. बलसम्पन्न, न शीलसम्पन्न – कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता। २. शीलसम्पन्न, न बलसम्पन्न – कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। ३. बलसम्पन्न भी, शीलसम्पन्न भी— कोई पुरुष बलसम्पन्न भी होता है और शीलसम्पन्न भी होता है। ४. न बलसम्पन्न, न शीलसम्पन्न- कोई पुरुष न बलसम्पन्न होता है और न शीलसम्पन्न ही होता है (४०३)। ४०४- [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—बलसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे]। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. बलसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न- कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु चरित्रसम्पन्न नहीं होता। २. चरित्रसम्पन्न, न बलसम्पन्न - कोई पुरुष चरित्रसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। ३. बलसम्पन्न भी, चरित्रसम्पन्न भी- कोई पुरुष बलसम्पन्न भी होता है और चरित्रसम्पन्न भी होता है। ४.न बलसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न-कोई पुरुष न बलसम्पन्न होता है और न चरित्रसम्पन्न ही होता है (४०४)। रूप-सूत्र ४०५ - चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–रूवसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे एवं रूवेण य सीलेण य, रूवेण य चरित्तेण य, सुयसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो सुयसंपण्णे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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