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चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश
२. शीलसम्पन्न, न जातिसम्पन्न- कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। ३. जातिसम्पन्न भी, शीलसम्पन्न भी— कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और शीलसम्पन्न भी होता है।
४. न जातिसम्पन्न, न शीलसम्पन्न— कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न शीलसम्पन्न ही होता है (३९४)।
३९५ - [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—जातिसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे]।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. जातिसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न – कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु चरित्रसम्पन्न नहीं होता। २. चरित्रसम्पन्न, न जातिसम्पन्न — कोई पुरुष चरित्रसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। ३. जातिसम्पन्न भी, चरित्रसम्पन्न भी- कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और चरित्रसम्पन्न भी होता है।
४. न जातिसम्पन्न, न चरित्रसम्पन्न – कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न चरित्रसम्पन्न ही होता है (३९५)।
३९६- [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, बलसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो बलसंपण्णे]।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कुलसम्पन्न, न बलसम्पन्न- कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। २. बलसम्पन्न, न कुलसम्पन्न- कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। ३. कुलसम्पन्न भी, बलसम्पन्न भी- कोई पुरुष कुलसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है। ४. न कुलसम्पन्न, न बलसम्पन्न – कोई पुरुष न कुलसम्पन्न होता है और न बलसम्पन्न ही होता है (३९६) ।
३९७ - [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—कुलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे]।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कुलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न – कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। २. रूपसम्पन्न, न कुलसम्पन्न- कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। ३. कुलसम्पन्न भी, रूपसम्पन्न भी— कोई पुरुष कुलसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। ४. न कुलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न – कोई पुरुष न कुलसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है (३९७)।
३९८- [चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—कुलसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, सुयसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो