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स्थानाङ्गसूत्रम्
३९१ – चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— जातिसंपणे णाममेगे णो बलसंपण्णे, बलसंपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि बलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपणे णो बलसंपणे ।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. जातिसम्पन्न, न बलसम्पन्न — कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता ।
२. बलसम्पन्न, न जातिसम्पन्न — कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता । ३. जातिसम्पन्न भी, बलसम्पन्न भी— कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और बलसम्पन्न भी होता है। ४. न जातिसम्पन्न, न बलसम्पन्न — कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न बलसम्पन्न ही होता है (३९१) ।
३९२ –— एवं जातीए य, रूवेण य, चत्तारि आलावगा, एवं जातीए य, सुएण य, एवं जातीए य, सीलेण य, एवं जातीए य, चरित्तेण य, एवं कुलेण य, बलेण य, एवं कुलेण य, रूवेण य, कुलेण य, सुत्तेण य, कुलेण य, सीलेण य, कुलेण य, चरित्तेण य, [ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा——–जातिसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेविरूवसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो रूवसंपणे ]।
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. जातिसम्पन्न, न रूपसम्पन्न — कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता । २. रूपसम्पन्न, न जातिसम्पन्न — कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। ३. जातिसम्पन्न भी, रूपसम्पन्न भी— कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। ४. न जातिसम्पन्न, न रूपसम्पन्न — कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है (३९२) ।
३९३ – [ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—– जातिसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपणे, सुयसंपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि सुयसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपणे णो सुयसंपणे ] |
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. जातिसम्पन्न, न श्रुतसम्पन्न — कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं होता ।
२. श्रुतसम्पन्न, न जातिसम्पन्न — कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। ३. जातिसम्पन्न भी, श्रुतसम्पन्न भी— कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और श्रुतसम्पन्न भी होता है। ४. न जातिसम्पन्न, न श्रुतसम्पन्न — कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न श्रुतसम्पन्न ही होता है (३९३) ।
३९४ - [ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा— जातिसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सीलसंपणे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो सीलसंपणे ] |
पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. जातिसम्पन्न, न शीलसम्पन्न — कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता ।