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________________ चतुर्थ स्थान तृतीय उद्देश ३२५ ४. न पथयायी, न उत्पथयायी — कोई पुरुष न मार्गगामी होता है और न उन्मार्गगामी होता है ( ३८८ ) । रूप- शील-सूत्र ३८९ - चत्तारि पुप्फा पण्णत्ता, तं जहा रूवसंपण्णे णाममेगे णो गंधसंपण्णे, गंधसंपणे णाममे णो रुवसंपणे, एगे रूवसंपण्णेवि गंधसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो गंधसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा रूवसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सीलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो सीलसंपण्णे । पुष्प चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. रूपसम्पन्न, न गन्धसम्पन्न — कोई फूल रूपसम्पन्न होता है, किन्तु गन्धसम्पन्न नहीं होता । जैसे—आकुलि का फूल । २. गन्धसम्पन्न, न रूपसम्पन्न — कोई फूल गन्धसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता । जैसे— बकुल का फूल । ३. रूपसम्पन्न भी, गन्धसम्पन्न भी— कोई फूल रूपसम्पन्न भी होता है और गन्धसम्पन्न भी होता है । जैसेही का फूल। ४. न रूपसम्पन्न, न गन्धसम्पन्न — कोई फूल न रूपसम्पन्न होता है और न गन्धसम्पन्न ही होता है। जैसे— वदरी (बोरड़ी) का फूल। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. रूपसम्पन्न, न शीलसम्पन्न — कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता । २. शीलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न — कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। ३. रूपसम्पन्न भी, शीलसम्पन्न भी— कोई पुरुष रूपसम्पन्न भी होता है और शीलसम्पन्न भी होता है । ४. न रूपसम्पन्न, न शीलसम्पन्न — कोई पुरुष न रूपसम्पन्न होता है और न शीलसम्पन्न ही होता है ( ३८९) । जाति - सूत्र ३९०—– चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा – जातिसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, कुलसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि कुलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो कुलसंपणे । पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. जातिसम्पन्न, न कुलसम्पन्न — कोई पुरुष जातिसम्पन्न (उत्तम मातृपक्षवाला) होता है, किन्तु कुलसम्पन्न (उत्तम पितृपक्षवाला) नहीं होता । २. कुलसम्पन्न, न जातिसम्पन्न — कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता । ३. जातिसम्पन्न भी, कुलसम्पन्न भी—– कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और कुलसम्पन्न भी होता है। ४. न जातिसम्पन्न, न कुलसम्पन्न — कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न कुलसम्पन्न ही होता है (३९०) ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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