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________________ ३०० स्थानाङ्गसूत्रम् णिक्कंकड-च्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासाईया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा। ____ नन्दीश्वरवर द्वीप के चक्रवाल-विष्कम्भ के बहुमध्य देशभाग में (ठीक बीचों-बीच) चारों दिशाओं में चार अंजनपर्वत कहे गये हैं। जैसे १. पूर्वी अंजनपर्वत, २. दक्षिणी अंजनपर्वत, ३. पश्चिमी अंजनपर्वत, ४. उत्तरी अंजनपर्वत। उनकी ऊर्ध्व ऊंचाई चौरासी हजार योजन और गहराई भूमितल में एक हजार योजन कही गई है। मूल में उनका विस्तार दश हजार योजन है। तदनन्तर थोड़ी-थोड़ी मात्रा से हीन-हीन होता हुआ ऊपरी भाग में एक हजार योजन विस्तार कहा गया है। मूल में उन अंजनपर्वतों की परिधि इकतीस हजार छह सौ तेईस योजन और ऊपरी भाग में तीन हजार एक सौ बासठ योजन की है। वे मूल में विस्तृत, मध्य में संक्षिप्त और अन्त में तनुक (और अधिक संक्षिप्त) हैं। वे गोपुच्छ के आकार वाले हैं। वे सभी ऊपर से नीचे तक अंजनरत्नमयी हैं, स्फटिक के समान स्वच्छ और पारदर्शी, चिकने, चमकदार, शाण पर घिसे हुए से, प्रमार्जनी से साफ किये हुए सरीखे, रज-रहित, निर्मल, निष्पंक, निष्कण्टक छाया वाले, प्रभायुक्त, रश्मि-युक्त, उद्योत-सहित, मन को प्रसन्न करने वाले, दर्शनीय, कमनीय और रमणीय हैं (३३८)। ३३९– तेसि णं अंजणगपव्वयाणं उवरि बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पण्णत्ता। तेसिं णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमझदेसभागे चत्तारि सिद्धायतणा पण्णत्ता। ते णं सिद्धायतणा एगं जोयणसयं आयामेणं, पण्णासं जोयणाई विक्खंभेणं, बावत्तरि जोयणाई उड्ढें उच्चत्तेंणं। तेसिं णं सिद्धायतणाणं चउदिसिं चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा—देवदारे, असुरदारे, णागदारे, सुवण्णदारे। तेसु णं दारेसु चउब्विहा देवा परिवसंति, तं जहा—देवा, असुरा, णागा, सुवण्णा। तेसिं णं दाराणं पुरओ चत्तारि मुहमंडवा पण्णत्ता। तेसिं णं मुहमंडवाणं पुरओ चत्तारि पेच्छाघरमंडवा पण्णत्ता। तेसिं णं पेच्छाघरमंडवाणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि वइरामया अक्खाडगा पण्णत्ता। तेसिं णं वइरामयाणं अक्खाडगाणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि मणिपेढियातो पण्णत्ताओ। तासिं णं मणिपेढिताणं उवरि चत्तारि सीहासणा पण्णत्ता। तेसिं णं सीहासणाणं उवरि चत्तारि विजयदूसा पण्णत्ता। तेसिं णं विजयदूसगाणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि वइरामया अंकुसा पण्णत्ता। तेसु णं वइरामएसु अंकुसेसु चत्तारि कुंभिका मुत्तादामा पण्णत्ता। ते णं कुंभिका मुत्तादामा पत्तेयं-पत्तेयं अण्णेहिं तदद्धउच्चत्तपमाणमित्तेहिं चउहिं अद्धकुंभिक्केहिं मुत्तादामेहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। तेसिं णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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