________________
चतुर्थ स्थान- द्वितीय उद्देश
३०१
तासिं णं मणिपेढियाणं उवरि चत्तारि-चत्तारि चेइयथूभा पण्णत्ता। तेसिं णं चेइयथूभाणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ।
तासिं णं मणिपेढियाणं उवरि चत्तारि जिणपडिमाओ सव्वरयणामईओ संपलियंकणिसण्णाओ थूभाभिमुहाओ चिटुंति, तं जहा—रिसभा, वद्धमाणा, चंदाणणा, वारिसेणा।
तेसिं णं चेइयथूभाणं पुरओ चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। तासिं णं मणिपेढियाणं उवरिं चत्तारि चेइयरुक्खा पण्णत्ता। तेसिं णं चेइयरुक्खाणं पुरओ चत्तारि मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ। तासिं णं मणिपेढियाणं उवरि चत्तारि महिंदज्झया पण्णत्ता। तेसिं णं महिंदज्झयाणं पुरओ चत्तारि णंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णत्ताओ।
तासिं णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउदिसिं चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, तं जहा—पुरथिमे णं, दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं। संग्रहणी-गाथा
पुव्वे णं असोगवणं, दाहिणओ होइ सत्तवण्णवणं ।
अवरे णं चंपगवणं, चूतवणं उत्तरे पासे ॥१॥ उन अंजन पर्वतों का ऊपर भूमिभाग अति समतल और रमणीय कहा गया है। उनके बहु-सम रमणीय भूमिभागों के बहुमध्य देश भाग में (बीचों-बीच) चार सिद्धायतन कहे गये हैं। वे सिद्धायतन एक सौ योजन लम्बाई वाले, पचास योजन चौड़ाई वाले और बहत्तर योजन ऊपरी ऊंचाई वाले
उन सिद्धायतनों के चारों दिशाओं में चार द्वार कहे गये हैं, जैसे१. देवद्वार, २. असुरद्वार, ३. नागद्वार, ४. सुपर्णद्वार । उन द्वारों पर चार प्रकार के देव रहते हैं, जैसे१. देव, २. असुर, ३. नाग, ४. सुपर्ण।
उन द्वारों के आगे चार मुख-मण्डप कहे गये हैं। उन मुख-मण्डपों के आगे चार प्रेक्षागृह-मण्डप कहे गये हैं। उन प्रेक्षागृह मण्डपों के बहुमध्य देश भाग में चार वज्रमय अक्षवाटक (दर्शकों के लिए बैठने के आसन) कहे गये हैं। उन वज्रमय अक्षवाटकों के बहुमध्य देशभाग में चार मणिपीठिकाएं कही गई हैं। उन मणिपीठिकाओं के ऊपर चार सिंहासन कहे गये हैं। उन सिंहासनों के ऊपर चार विजयदूष्य (चन्दोवा) कहे गये हैं। उन विजयदूष्यों के बहुमध्य देश भाग में चार वज्रमय अंकुश कहे गये हैं। उन वज्रमय अंकुशों के ऊपर चार कुम्भिक मुक्तामालाएं लटकती हैं।
__उन कुम्भिक मुक्तामालाओं से प्रत्येक माला पर उनकी ऊंचाई से आधी ऊंचाई वाली चार अर्धकुम्भिक मुक्तामालएं सर्व ओर से लिपटी हुई हैं (३३९)।
विवेचन- संस्कृत टीकाकार ने आगम प्रमाण को उद्धृत करके कुम्भ का प्रमाण इस प्रकार कहा है—दो