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स्थानाङ्गसूत्रम्
संखे, मणोसिलाए।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप की बाहरी वेदिका के अन्तिम भाग से चारों दिशाओं में लवणसमुद्र के भीतर बयालीस-बयालीस हजार योजन जाने पर वेलंधर नागराजों के चार आवास-पर्वत कहे गये हैं, जैसे
१.गोस्तूप, २. उदावभास, ३. शंख, ४. दकसीम। उनमें पल्योपम की स्थिति वाले यावत् महर्धिक चार देव रहते हैं, जैसे१. गोस्तूप, २. शिवक, ३. शंक, ४. मनःशिलाक (३३०)।
३३१- जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउसु विदिसासु लवणसमुई बायालीसं-बायालीसं जोयणसहस्साई ओगाहेत्ता, एत्थ णं चउण्हं अणुवेलंधरणागराईणं चत्तारि आवासपव्वता पण्णत्ता, तं जहा कक्कोडए, विज्जुप्पभे, केलासे, अरुणप्पभे।
तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा कक्कोडए, कद्दमए, केलासे, अरुणप्पभे।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप की बाहरी वेदिका के अन्तिम भाग से चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र के भीतर बयालीस-बयालीस हजार योजन जाने पर अनुवेलन्धर नागराजों के चार आवास-पर्वत कहे गये हैं, जैसे
१. कर्कोटक, २. विद्युत्प्रभ, ३. कैलाश, ४. अरुणप्रभ।। उनमें पल्योपम की स्थिति वाले यावत् महर्धिक चार देव रहते हैं, जैसे
१. कर्कोटक, २. कर्दमक, ३. कैलाश, ४. अरुणप्रभ (३३१) । ज्योतिष सूत्र
३३२- लवणे णं समुद्दे चत्तारि चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा। चत्तारि सूरिया तविंसु वा तवंति वा तविस्संति वा। चत्तारि कित्तियाओ जाव चत्तारि भरणीओ।
लवणसमुद्र में चार चन्द्रमा प्रकाश करते थे, प्रकाश करते हैं और प्रकाश करते रहेंगे। चार सूर्य आताप करते थे, आताप करते हैं और आताप करते रहेंगे।
चार कृतिका यावत् चार भरणी तक के सभी नक्षत्रों ने चन्द्र के साथ योग किया था, करते हैं और करते रहेंगे (३३२)।
३३३- चत्तारि अग्गी जाव चत्तारि जमा। नक्षत्रों के अग्नि से लेकर यम तक चार-चार देव कहे गये हैं (३३३)। ३३४- चत्तारि अंगारा जाव चत्तारि भावकेऊ।
चार अंगारक यावत् चार भावकेतु तक के सभी ग्रहों ने चार (भ्रमण) किया था, चार करते हैं और चार करते रहेंगे (३३४)।