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________________ चतुर्थ स्थान-द्वितीय उद्देश २९७ १. घनदन्त द्वीप, २. लष्टदन्त द्वीप, ३. गूढदन्त द्वीप, ४. शुद्धदन्त द्वीप। उन द्वीपों पर चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं, जैसे१. घनदन्त, २. लष्टदन्त, ३. गूढदन्त, ४. शुद्धदन्त (३२७)। ३२८– जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं सिहरिस्स वासहरपव्वयस्स चउसु विदिसासु लवणसमुदं तिण्णि-तिण्णि जोयणसयाइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहाएगूरुयदीवे, सेसं तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं जाव सुद्धदंता। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में शिखरी वर्षधर पर्वत की चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र के भीतर तीन-तीन सौ योजन जाने पर चार अन्तर्वीप कहे गये हैं, जैसे १. एकोरुक द्वीप, २. आभाषिक द्वीप, ३. वैषाणिक द्वीप, ४. लांगुलिक द्वीप। इस प्रकार जैसे क्षुल्लक हिमवान् वर्षधर पर्वत की चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र के भीतर जितने अन्तर्दीप और जितने प्रकार के मनुष्य कहे गये हैं वह सर्व वर्णन यहां पर भी शुद्धदन्त मनुष्य पर्यन्त मन्दर पर्वत के उत्तर में जानना चाहिए (३२८)। महापाताल सूत्र - ३२९- जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउदिसिं लवणसमुदं पंचाणउइं जोयणसहस्साइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं महतिमहालया महालंजरसंठाणसंठिता चत्तारि महापायाला पण्णत्ता, तं जहा—वलयामुहे, केउए, जूवए, ईसरे। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा-काले, महाकाले, वेलंबे, पभंजणे। जम्बूद्वीप नामक द्वीप की बाहरी वेदिका के अन्तिम भाग से चारों दिशाओं में लवणसमुद्र के भीतर पंचानवै हजार योजन जाने पर चार महापाताल अवस्थित हैं, जो बहुत विशाल एवं बड़े भारी घड़े के समान आकार वाले हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं १. वड़वामुख (पूर्व में) २. केतुक (दक्षिण में) ३. यूपक (पश्चिम में) ४. ईश्वर (उत्तर में)। उनमें पल्योपम की स्थिति वाले यावत् महर्धिक चार देव रहते हैं, जैसे १. काल, २. महाकाल, ३. वेलम्ब, ४. प्रभंजन (३२९)। आवास-पर्वत-सूत्र ___३३०– जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउद्दिसिं लवणसमुदं बायालीसंबायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं चउण्हं वेलंधरणागराईणं चत्तारि आवासपव्वता पण्णत्ता, तं जहा—गोथूभे, उदओभासे, संखे, दगसीमे। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमद्वितीया परिवसंति, तं जहा—गोथूभे, सिवए,
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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