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________________ चतुर्थ स्थान द्वितीय उद्देश आयुष्य चार प्रकार का कहा गया है, जैसे— १. नैरयिक - आयुष्य, २ . तिर्यग्योनिक - आयुष्य, ३. मनुष्य- आयुष्य और ४. देव- आयुष्य (२८६)। २८७- चउव्विहे भवे पण्णत्ते, तं जहा——णेरइयभवे, जाव ( तिरिक्खजोणियभवे, भवे) देवभवे । भव चार प्रकार का कहा गया है, जैसे— १. . नैरयिकभव, २. तिर्यग्योनिकभव, ३. मनुष्यभव और ४. देवभव (२८७)। आहार - सूत्र २८८ - चउव्विहे आहारे पण्णत्ते, 'जहा असणे, पाणे, खाइमे, साइमे । आहार चार प्रकार का कहा गया है, जैसे— १. अशन — अन्न आदि । २. पान - कांजी, दुग्ध, छाछ आदि । ३. खादिम — फल, मेवा आदि । ४. स्वादिम — ताम्बूल, लवंग, इलायची आदि (२८८ ) । २८७ २८९ - चउव्विहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा— उवक्खरसंपण्णे, उवक्खडसंपण्णे, सभावसंपण्णे, परिजुसियसंपण्णे । बन्ध चार प्रकार का कहा गया है, जैसे १. प्रकृतिबन्ध — बन्धनेवाले कर्म - पुद्गलों में ज्ञानादि के रोकने का स्वभाव उत्पन्न होना । २. स्थितिबन्ध — बन्धनेवाले कर्म-पुद्गलों की काल मर्यादा का नियत होना । मणुस्स पुनः आहार चार प्रकार का कहा गया है, जैसे १. उपस्कार - सम्पन्न — घी, तेल आदि के वघार से युक्त मसाले डालकर तैयार किया आहार । २. उपस्कृत - सम्पन्न — पकाया हुआ भात आदि । ३. स्वभाव-सम्पन्न—–— स्वभाव से पके फल आदि । ४. पर्युषित-सम्पन्न — रात - वासी रखने से तैयार हुआ आहार, जैसे कांजी-रस में रक्खा आम्रफल (२८९)। कर्मावस्था - सूत्र २९० - चउव्विहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा —— पगतिबंधे, ठितिबंधे, अणुभावबंधे, पदेसबंधे। ३. अनुभावबन्ध— बन्धनेवाले कर्म-पुद्गलों में फल देने की तीव्र-मन्द आदि शक्ति का उत्पन्न होना । ४. प्रदेशबन्ध—— बन्धनेवाले कर्म - पुद्गलों के प्रदेशों का समूह (२९०) । उपक्रम चार प्रकार का कहा गया है, जैसे— १. बन्धनोपक्रम - कर्म - बन्धन में कारणभूत जीव के वीर्य विशेष का प्रयत्न । २९१ - चउव्व्हेि उवक्कमे पण्णत्ते, तं जहा बंधेणोवक्कमे, उदीरणोवक्कमे, उवसामणोवक्कमे, विप्परिणामणोवक्कमे ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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