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चतुर्थ स्थान द्वितीय उद्देश
२. पराजेत्री, न जेत्री— कोई सेना शत्रु सेना से पराजित होती है, किन्तु उसे जीतती नहीं है ।
३. जेत्री भी, पराजेत्री भी कोई सेना कभी शत्रु सेना को जीतती भी है और कभी उससे पराजित भी होती
है।
४. न जेत्री, न पराजेत्री— कोई सेना न जीतती है और न पराजित ही होती है ।
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. जेता, न पराजेता –— कोई साधु-पुरुष परीषहादि को जीतता है, किन्तु उनसे पराजित नहीं होता। जैसे भगवान् महावीर ।
२. पराजेता,
२८३
न जेता — कोई साधु-पुरुष परीषहादि से पराजित होता है, किन्तु उनको जीत नहीं पाता । जैसे
कण्डरीक ।
३. जेता भी, पराजेता भी—— कोई साधु पुरुष परीषहादि को कभी जीतता भी है और कभी उनसे पराजित भी होता है। जैसे—– शैलक राजर्षि ।
४. न जेता, न पराजेता— कोई साधु पुरुष परीषहादि को न जीतता ही है और न पराजित ही होता है । जैसे—अनुत्पन्न परीषहवाला साधु (२८०) ।
. २८१ – चत्तारि सेणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा जइत्ता णाममेगा जयइ, जड़त्ता णाममेगा पराजिणति, पराजिणित्ता, णाममेगा जयइ, पराजिणित्ता णाममेगा पराजिणति ।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा ——– जड़त्ता णाममेगा जयइ, जयइ णाममेगे पराजिणति, पराजिणित्ता णाममेगे जयइ, पराजिणित्ता णाममेगे पराजिणति ।
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पुनः सेनाएं चार प्रकार की कही गई हैं। जैसे
१. जित्वा, पुन: जेत्री — कोई सेना एक बार शत्रुञसेना को जीतकर दुबारा युद्ध होने पर फिर भी जीतती है। २. जित्वा, पुनः पराजेत्री —— कोई सेना एक बार शत्रु सेना को जीतकर दुबारा युद्ध होने पर उससे पराजित
होती है।
३. पराजित्य, पुन: जेत्री —— कोई सेना एक बार शत्रु सेना से पराजित होकर दुबारा युद्ध होने पर उसे जीतती
४. पराजित्य पुनः पराजेत्री— कोई सेना एक बार पराजित होकर के पुनः पराजित होती है ।
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं । जैसे—.
१. जित्वा पुन: जेता — कोई पुरुष कष्टों को जीत कर फिर भी जीतता है ।
है
२. जित्वा पुनः ३. पराजित्य पुन:
पराजेता — कोई पुरुष कष्टों को पहले जीतकर पुन: (बाद में) हार जाता जेता — कोई पुरुष पहले हार कर पुनः जीतता है ।
४. पराजित्य पुनः पराजेता — कोई पुरुष पहले हार कर फिर भी हारता है (२८१)।
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माया- सूत्र
२८२ – चत्तारि केतणा पण्णत्ता, तं जहा—वंसीमूलकेतणए, मेंढविसाणकेतणए,