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________________ २८४ गोमुत्तिकेतणए, अवलेहणियकेतणए । एवामेव चउविधा माया पण्णत्ता, तं जहा — वंसीमूलकेतणासमाणा, जाव (मेंढविसाणकेतणासमाणा, गोमुत्तिकेतणासमाणा) अवलेहणियकेतणासमाणा । १. वंसीमूलकेतणासमाणं मायमणुपविट्टे जीवे कालं करेति, णेरइएस उववज्जति । २. मेंढविसाणकेतणासमाणं मायमणुपविट्टे जीवे कालं करेति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति । ३. गोमुत्ति जाव (केतणासमाणं मायमणुपविट्टे जीवे) कालं करेति, मणुस्सेसु उववज्जति । ४. अवलेहणिय जाव (केतणासमाणं मायमणुपविट्ठे जीवे कालं करेति ), देवेसु उववज्जति । केतन (वक्र पदार्थ) चार प्रकार का कहा गया है, जैसे १. वंशीमूल केतनक, बांस की जड़ का वक्रपन । २. मेंदूविषाणकेतनक— मेंढ़े के सींग का वक्रपन । ३. गोमूत्रिका केतनक— चलते बैल की मूत्र - धारा का वक्रपन । ४. अवलेखनिका केतनक——— छिलते हुए बाँस की छाल का वक्रपन । इसी प्रकार माया भी चार प्रकार की कही गई है, जैसे १. वंशीमूल केतनसमाना—- बांस की जड़ के समान अत्यन्त कुटिल अनन्तानुबन्धी माया । २. मेंदूविषाण केतनसमाना- मेंढ़े के सींग के समान कुटिल अप्रत्याख्यानावरणं माया । स्थानाङ्गसूत्रम् ३. गोमूत्रिका केतनसमाना— गोमूत्रिका केतनक के समान प्रत्याख्यानावरण माया। ४. अवलेखनिका केतनसमाना— बांस के छिलके के समान संज्वलन माया । १. वंशीमूल के समान माया में प्रवर्तमान जीव काल (मरण) करता है तो नारकी जीवों में उत्पन्न होता है। २. मेष-विषाण के समान माया में प्रवर्तमान जीव काल करता है तो तिर्यग्योनि के जीवों में उत्पन्न होता है। ३. गोमूत्रिका के समान माया में प्रवर्तमान जीव काल करता है तो मनुष्यों में उत्पन्न होता है। ४. अवलेखनिका के समान माया में प्रवर्तमान जीव काल करता है तो देवों में उत्पन्न होता है (२८२) । मान-सूत्र २८३ – चत्तारि थंभा पण्णत्ता, तं जहा सेलथंभे, अद्विथंभे, दारुथंभे, तिणिसलताथंभे । एवामेव चव्विधे माणे पण्णत्ता, तं जहा— सेलथंभसमाणे, जाव (अट्ठिथंभसमाणे, दारुथंभसमाणे), तिणिसलताथंभसमाणे । १. सेलथंभसमाणं माणं अणुपविट्ठे जीवे कालं करेति, णेरइएसु उववज्जति । २. एवं जाव (अट्ठिथंभसमाणं माणं अणुपविट्ठे कालं करेति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति । ३. दारुथंभसमाणं माणं अणुपविट्ठे जीवे कालं करेति, मणुस्सेसु उववज्जति ) । ४. तिणिसलताथंभसमाणं माणं अणुपविट्टे जीवे कालं करेति, देवेसु उववज्जति । स्तम्भ चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे— १. शैलस्तम्भ – पत्थर का खम्भा । २. अस्थिस्तम्भ — हाड़ का खम्भा ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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