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________________ २०० स्थानाङ्गसूत्रम् पणते णाममेगे उण्णते, पणते णाममेगे पणते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पण्णत्ता, तं जहा—उण्णते णामेगे उण्णते, तहेव जाव [उण्णते णाममेगे पणते, पणते णाममेगे उण्णते ] पणते णाममेगे पणते। वृक्ष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१.कोई वृक्ष शरीर से भी उन्नत होता है और जाति से भी उन्नत होता है। जैसे—शाल वृक्ष। २. कोई वृक्ष शरीर से (द्रव्य) से उन्नत, किन्तु जाति (भाव) से प्रणत (हीन) होता है। जैसे—नीम। ३. कोई वृक्ष शरीर से प्रणत, किन्तु जाति से उन्नत होता है। जैसे—अशोक। ४. कोई वृक्ष शरीर से प्रणत और जाति से भी प्रणत होता है। जैसे-खैर। इस प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई पुरुष शरीर से भी उन्नत होता है और गुणों से भी उन्नत होता है। २. [कोई पुरुष शरीर से उन्नत होता है किन्तु गुणों से प्रणत होता है। . ३. कोई पुरुष शरीर से प्रणत और गुणों से उन्नत होता है। ४. कोई पुरुष शरीर से भी प्रणत होता है और गुणों से भी प्रणत होता है (२)। विवेचन– कोई वृक्ष शाल के समान शरीर रूप द्रव्य से उन्नत (ऊंचे) होते हैं और जाति रूप भाव से उन्नत होते हैं। नीम वृक्ष शरीर रूप द्रव्य से तो उन्नत है, किन्तु मधुर रस आदि भाव से प्रणत (हीन) होता है। अशोक वृक्ष शरीर से हीन या छोटा है, किन्तु जाति आदि भाव की अपेक्षा उन्नत (ऊंचा) माना जाता है। खैर (खदिर, बबूल) वृक्ष जाति और शरीर दोनों से हीन होते हैं। इसी प्रकार कोई पुरुष कुल, जाति आदि की अपेक्षा से भी ऊंचा होता है और ज्ञान आदि गुणों से भी ऊंचा होता है। अथवा वर्तमान भव में भी उच्चकुलीन है और आगामी भव में भी उच्चगति को प्राप्त होने से उच्च है। कोई मनुष्य उच्च कुल में जन्म लेकर भी ज्ञानादि गुणों से प्रणत (हीन) होता है। कोई मनुष्य नीच कुल में जन्म लेने पर भी ज्ञान, तपश्चरणादि गुणों से उन्नत (उच्च) होता है तथा कोई पुरुष नीच कुल में उत्पन्न एवं ज्ञानादि गणों से भी हीन होता है। इस सत्र के द्वारा वृक्ष के समान पुरुषजाति के चार प्रकार बताये गये। वृक्ष-चतुर्भंगी के समान आगे कही जाने वाली चतुर्भंगियों का स्वरूप भी जानना चाहिए। ३- चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा—उण्णते णाममेगे उण्णतपरिणते, उण्णते णाममेगे पणतपरिणते, पणते णाममेगे उण्णतपरिणते, पणते णाममेगे पणतपरिणते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पण्णत्ता, तं जहा—उण्णते, णाममेगे उण्णतपरिणते, चउभंगो [उण्णते णाममेगे पणतपरिणते, पणते णाममेगे उण्णतपरिणते, पणते णाममेगे पणतपरिणते]। पुनः वृक्ष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे १. कोई वृक्ष शरीर से उन्नत और उन्नतपरिणत (अशुभ रसादि को छोड़कर शुभ रसादि रूप से परिणत) होता है। ____२. कोई वृक्ष शरीर से उन्नत होकर भी प्रणतपरिणत (शुभ रसादि को छोड़ कर अशुभ रसादि रूप से परिणत) होता है। गा।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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