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चतुर्थ स्थान- प्रथम उद्देश
२०१ ३. कोई वृक्ष शरीर से प्रणत और उन्नत भाव से परिणत होता है। ४. कोई वृक्ष शरीर से प्रणत और प्रणत भाव से परिणत होता है (३)। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कोई पुरुष शरीर से उन्नत और उन्नत भाव से परिणत होता है। २. [कोई पुरुष शरीर से उन्नत और प्रणत भाव से परिणत होता है। ३. कोई पुरुष शरीर से प्रणत और उन्नत भाव से परिणत होता है। ४. कोई पुरुष शरीर से प्रणत और प्रणत भाव से भी परिणत होता है।]
४- चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता, तं जहा—उण्णते णाममेगे उण्णतरूवे, तहेव चउभंगो (उण्णते णाममेगे पणतरूवे, पणते णाममेगे उण्णतरूवे, पणते णाममेगे पणतरूवे)।
___ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—उण्णते णाममेगे (४) उण्णतरूवे, [उण्णते णाममेगे पणतरूवे, पणते णाममेगे उण्णतरूवे, पणते णाममेगे पणतरूवे]।
पुनः वृक्ष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई वृक्ष शरीर से उन्नत और उन्नत (उत्तम) रूप वाला होता है। २. कोई वृक्ष शरीर से उन्नत किन्तु प्रणत रूप वाला (कुरूप) होता है। ३. कोई वृक्ष शरीर से प्रणत किन्तु उन्नत रूप वाला होता है। ४. कोई वृक्ष शरीर से प्रणत और प्रणत रूप वाला होता है (४)। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष शरीर से उन्नत और उन्नत रूप वाला होता है। २. [कोई पुरुष शरीर से उन्नत किन्तु प्रणत रूप वाला होता है। ३. कोई पुरुष शरीर से प्रणत किन्तु उन्नत रूप वाला होता है। ४. कोई पुरुष शरीर से प्रणत और प्रणत रूप वाला होता है।]
५–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—उण्णते णाममेगे उण्णतमणे ४ (उण्णते णाममेगे पणतमणे, पणते णाममेगे उण्णतमणे, पणते णाममेगे पणतमणे)।
एवं संकप्पे ८, पण्णे ९, दिट्ठी १०, सीलायारे ११, ववहारे १२, परक्कमे १३। पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत और उन्नत मन वाला (उदार) होता है। २. कोई पुरुष ऐश्वर्य से उन्नत किन्तु प्रणत मन वाला (कंजूस) होता है। ३. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत (हीन) किन्तु उन्नत मन वाला होता है। ४. कोई पुरुष ऐश्वर्य से प्रणत और मन से भी प्रणत होता है (५)।
६-[चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—उण्णते णाममेगे उण्णतसंकप्पे, उण्णते णाममेगे पणतसंकप्पे, पणते णाममेगे उण्णतसंकप्पे, पणते णाममेगे पणतसंकप्पे।]