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________________ तृतीय स्थान • चतुर्थ उद्देश संपया हुत्था । श्रमण भगवान् महावीर के तीन सौ शिष्य चौदह पूर्वधर थे, वे जिन नहीं होते हुए भी जिन के समान थे, सर्वाक्षर-सन्निपाती तथा जिन भगवान् के समान अवितथ व्याख्यान करने वाले थे। यह भगवान् महावीर की चतुर्दशपूर्वी उत्कृष्ट शिष्य - सम्पदा थी (५३४) । १९५ विवेचन—– अनादिनिधन वर्णमाला के अक्षर चौसठ (६४) माने गये हैं । उनके दो तीन आदि अक्षरों से लेकर चौसठ अक्षरों तक के संयोग से उत्पन्न होने वाले पद असंख्यात होते हैं । असंख्यात भेदों को जानने वाला ज्ञानी सर्वाक्षर- सन्निपाती श्रुतधर कहलाता है । सन्निपात का अर्थ संयोग है। सर्व अक्षरों के संयोग से होने वाले ज्ञान को सर्वाक्षर- सन्निपाती कहते हैं । ५३५ तओ तित्थयरा चक्कवट्टी होत्था, तं जहा संती, कुंथू, अरो । तीन तीर्थंकर चक्रवर्ती हुए शान्ति, कुन्थु और अरनाथ (५३५) । ग्रैवेयक-विमान- सूत्र ५३६– ओ विज्ज - विमाण- पत्थडा पण्णत्ता, तं जहा— हेट्ठिम - गेविज्ज - विमाण-पत्थडे, मज्झिम- गेविज्ज - विमाण-पत्थडे, उवरिम- गेविज्ज- विमाण-पत्थडे । ग्रैवेयक विमान के तीन प्रस्तर कहे गये हैं— अधस्तन (नीचे का) ग्रैवेयक विमान प्रस्तर, मध्यम (बीच का) ग्रैवेयक विमान प्रस्तर और उपरिम (ऊपर का) ग्रैवेयक विमानं प्रस्तर (५३६ ) । ५३७ – हिट्टिम - गेविज विमाण-पत्थडे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा— हेट्ठिम- हेट्ठिम- गेविज्ज- विमाणपत्थडे, हेट्टिम-मज्झिम- गेविज्ज - विमाण - पत्थडे, हेट्ठिम-उवरिम - गेविज्ज - विमाण - पत्थडे । अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तर तीन प्रकार का कहा गया है— अधस्तन- अधस्तन-ग्रैवेयक विमान - प्रस्तर, अधस्तन-मध्यमविमान - प्रस्तर और अधस्तन - उपरिमग्रैवेयक-विमान- प्रस्तर (५३७ ) । ५३८ – मज्झिम - गेविज्ज - विमाण - पत्थडे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा— मज्झिम - हेट्ठिम - गेविज्जविमाण - पत्थडे, मज्झिम- मज्झिम- गेविज्ज - विमाण - पत्थडे, मज्झिम - उवरिम - गेविज्ज- विमाण- पत्थडे । मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तर तीन प्रकार का कहा गया है— मध्यम- अधस्तन ग्रैवेयक विमानप्रस्तर, मध्यम- मध्यम ग्रैवेयक विमानप्रस्तर और मध्यम - उपरिम ग्रैवेयक विमानप्रस्तर ( ५३८ ) । ५३९ – उवरिम - गेविज विमाण-पत्थडे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा उवरिम- हेट्ठिम- गेविज्जविमाण-पत्थडे, उवरिम - मज्झिम- गेविज्ज - विमाण - पत्थडे, उवरिम - उवरिम - गेविज्ज - विमाण - पत्थडे । उपरिम ग्रैवेयक- विमान प्रस्तर तीन प्रकार का कहा गया है—उपरिम- अधस्तन ग्रैवेयक- विमानप्रस्तर, उपरिम- मध्यम ग्रैवेयक विमानप्रस्तर और उपरिम- उपरिम ग्रैवेयक- विमानप्रस्तर ( ५३९ ) । विवेचन — ग्रैवेयक विमान सब मिलकर नौ हैं और वे एक-दूसरे के ऊपर अवस्थित हैं। उन्हें पहले तीन विभागों में कहा गया है— नीचे का त्रिक, बीच का त्रिक और ऊपर का त्रिक। तत्पश्चात् एक-एक त्रिक के तीन-तीन
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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