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स्थानाङ्गसूत्रम् विकल्प किए गए हैं। सब मिलकर नौ विमान होते हैं। पापकर्म-सूत्र
५४०-जीवाणं तिट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा- इथिणिव्वत्तिते, पुरिसणिव्वत्तिते, णपुंसगणिव्वत्तिते।
एवं चिण-उवचिण-बंध उदीर-वेद तह णिजरा चेव। जीवों ने त्रिस्थान-निवर्तित पुद्गलों का कर्मरूप से संचय किया है, संचय करते हैं और संचय करेंगे१. स्त्रीनिवर्तित (स्त्रीवेद द्वारा उपार्जित) पुद्गलों का कर्मरूप से संचय। २. पुरुषनिवर्तित (पुरुषवेद द्वारा उपार्जित) पुद्गलों का कर्मरूप से संचय। ३. नपुंसकनिर्वर्तित (नपुंसकवेद द्वारा उपार्जित) पुद्गलों का कर्मरूप से संचय।
इसी प्रकार जीवों ने त्रिस्थान-निवर्तित पुद्गलों का कर्मरूप से उपचय, बन्ध, उदीरण, वेदन तथा निर्जरण किया है, करते हैं और करेंगे। पुद्गल-सूत्र
५४१-तिपदेसिया खंधा अणंता पण्णत्ता। त्रि-प्रदेशी (तीन प्रदेश वाले) पुद्गल स्कन्ध अनन्त कहे गये हैं (५४१)। ५४२- एवं जाव तिगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता।
इसी प्रकार तीन प्रदेशावगाढ़, तीन समय की स्थितिवाले और तीन गुणवाले पुद्गल स्कन्ध अनन्त कहे गये हैं तथा शेष सभी वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के तीन-तीन गुणवाले पुद्गल-स्कन्ध अनन्त कहे गये हैं (५४२)।
॥ तृतीय स्थानक समाप्त ॥