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________________ तृतीय स्थान– चतुर्थ उद्देश १८५ मनोरथ-सूत्र ४९६- तिहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे महाणिजरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा१. कया णं अहं अप्पं वा बहुयं सुयं अहिजिस्सामि ? २. कया णं अहं एकल्लविहारपडिमं उवसंपजित्ता णं विहरिस्सामि ? ३. कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसिते भत्तपाणपडियाइक्खिते पाओवगते कालं अणवकंखमाणे विहरिस्सामि ? एवं समणसा सवयसा सकायसा पागडेमाणे समणे निग्गंथे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति। तीन कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है१. कब मैं अल्प या बहुत श्रुत का अध्ययन करूंगा? २. कब मैं एकलविहारप्रतिमा को स्वीकार कर विहार करूंगा? ३. कब मैं अपश्चिम मारणान्तिक संलेखना की आराधना से युक्त होकर, भक्त-पान का परित्याग कर पादोपगमन संथारा स्वीकार कर मृत्यु की आकांक्षा नहीं करता हुआ विचरूंगा? .इस प्रकार उत्तम मन, वचन, काय से उक्त भावना करता हुआ श्रमण निर्ग्रन्थ महानिर्जरा तथा महापर्यवसान वाला होता है (४९६)। ४९७- तिहिं ठाणेहिं समणोवासए महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा - १. कया णं अहं अप्पं वा बहुयं वा परिग्गहं परिचइस्सामि ? २. कया णं अहं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारितं पव्वइस्सामि ? ३. कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसिते भत्तपाणपडियाइक्खिते पाओवगते कालं अणवकंखमाणे विहरिस्सामि ? एवं समणसा सवयसा सकायसा पागडेमाणे समणोवासए महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति। तीन कारणों से श्रमणोपासक (गृहस्थ श्रावक) महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है१. कब मैं अल्प या बहुत परिग्रह का परित्याग करूंगा? २. कब मैं मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित होऊंगा? ३. कब मैं अपश्चिम मारणान्तिक संलेखना की आराधना से युक्त होकर भक्त-पान का परित्याग कर, प्रायोपगमन संथारा स्वीकार कर मृत्यु की आकांक्षा नहीं करता हुआ विचरूंगा? ___इस प्रकार उत्तम मन, वचन, काय से उक्त भावना करता हुआ श्रमणोपासक महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है (४९७)। विवेचन– सात तत्त्वों में निर्जरा एक प्रधान तत्त्व है। बंधे हुए कर्मों के झड़ने को निर्जरा कहते हैं। यह कर्म-निर्जरा जब विपुल प्रमाण में असंख्यात गुणित क्रम से होती है, तब वह महानिर्जरा कही जाती है। महापर्यवसान
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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