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________________ तृतीय स्थान – चतुर्थ उद्देश १८३ असुरकुमारों के तीन शरीर कहे गये हैं वैक्रिय शरीर, तैजस शरीर और कार्मण शरीर (४८४) । इसी प्रकार सभी देवों के तीन शरीर जानना चाहिए (४८५)। पृथ्वीकायिक जीवों के तीन शरीर कहे गये हैं औदारिक शरीर (औदारिक पुद्गल वर्गणाओं से निर्मित अस्थि-मांसमय शरीर) तैजस शरीर और कार्मण शरीर (४८६)। इसी प्रकार वायुकायिक जीवों को छोड़कर चतुरिन्द्रिय तक के सभी जीवों के तीन शरीर जानना चाहिए (वायुकायिकों के चार शरीर होने से उन्हें छोड़ दिया गया है) (४८७) प्रत्यनीक-सूत्र ४८८- गुरुं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा—आयरियपडिणीए, उवज्झायपडिणीए, थेरपडिणीए। गुरु की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीक (प्रतिकूल व्यवहार करने वाले) कहे गये हैं—आचार्य-प्रत्यनीक, उपाध्याय-प्रत्यनीक और स्थविर-प्रत्यनीक (४८८)। ४८९- गतिं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा इहलोगपडिणीए, परलोगपडिणीए, दुहओलोगपडिणीए। ____ गति की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीक कहे गये हैं—इहलोक-प्रत्यनीक (इन्द्रियार्थ से विरुद्ध करने वाला, यथा—पंचाग्नि तपस्वी) परलोक-प्रत्यनीक (इन्द्रियविषयों में तल्लीन) और उभय-लोक-प्रत्यनीक (चोरी आदि करके इन्द्रिय-विषयों में तल्लीन) (४८९)। ___४९०- समूहं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा— कुलपडिणीए, गणपडिणीए, संघपडिणीए। समूह की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीक कहे गये हैं—कुल-प्रत्यनीक, गण-प्रत्यनीक और संघ-प्रत्यनीक (४९०)। . ४९१– अणुकंपं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा—तवस्सिपडिणीए, गिलाणपडिणीए, सेहपडिणीए। अनुकम्पा की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीक कहे गये हैं तपस्वी-प्रत्यनीक, ग्लान-प्रत्यनीक और शैक्षप्रत्यनीक (४९१)। ४९२- भावं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा—णाणपडिणीए, दंसणपडिणीए, चरित्तपडिणीए। - भाव की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीक कहे गये हैं—ज्ञान-प्रत्यनीक, दर्शन-प्रत्यनीक और चारित्र-प्रत्यनीक (४९२)। ४९३ - सुयं पडुच्च तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा सुत्तपडिणीए, अत्थपडिणीए,
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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