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________________ स्थानाङ्गसूत्रम् व्यवसाय (वस्तुस्वरूप का निर्णय अथवा पुरुषार्थ की सिद्धि के लिए किया जाने वाला अनुष्ठान ) तीन प्रकार का कहा गया है —— धार्मिक व्यवसाय, अधार्मिक व्यवसाय और धार्मिकाधार्मिक व्यवसाय । अथवा व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है— प्रत्यक्ष व्यवसाय, प्रात्ययिक (व्यवहार- प्रत्यक्ष) व्यवसाय और अनुगामिक (आनुमानिक व्यवसाय) अथवा व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है— ऐहलौकिक, पारलौकिक और ऐहलौकिक- पारलौकिक (३९५) । १६२ ३९६— - इहलोइए ववसाए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा—लोइए, वेइए, सामइए । ऐहलौकिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है— लौकिक, वैदिक और सामयिक — श्रमणों का व्यवसाय (३९६)। ३९७— लोइए ववसाए तिविधे पण्णत्ते, तं जहा—अत्थ, धम्मे, कामे । लौकिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है— अर्थव्यवसाय, धर्मव्यवसाय और कामव्यवसाय (३९७)। ३९८- • वेइए ववसाए तिविधे पण्णत्ते, तं जहा-रिउव्वेदे, जउव्वेदे, सामवेदे । वैदिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहा गया है— ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद व्यवसाय अर्थात् इन वेदों के अनुसार किया जाने वाला निर्णय या अनुष्ठान (३९८) । ३९९ – सामइए ववसाए तिविधे पण्णत्ते, तं जहा णाणे, दंसणे, चरित्ते । सामयिक व्यवसाय तीन प्रकार का कहां गया है— ज्ञान, दर्शन और चारित्र व्यवसाय (३९९) । विवेचन—–— उपर्युक्त पाँच सूत्रों में विभिन्न व्यवसायों का निर्देश किया गया है। व्यवसाय का अर्थ है निश्चय, *निर्णय और अनुष्ठान । निश्चय करने के साधनभूत ग्रन्थों को भी व्यवसाय कहा जाता है। उक्त पांच सूत्रों में विभिन्न दृष्टिकोणों से व्यवसाय का वर्गीकरण किया गया है। प्रथम वर्गीकरण धर्म के आधार पर किया गया है। दूसरा वर्गीकरण ज्ञान के आधार पर किया गया है। यह वैशेषिक एवं सांख्यदर्शन सम्मत तीन प्रमाणों की ओर संकेत करता है— सूत्रोक्त वर्गीकरण वैशेषिक एवं सांख्य-सम्मत प्रमाण १. प्रत्यक्ष १. प्रत्यक्ष २. प्रात्ययिक - आगम ३. आनुगामिक- अनुमान २. अनुमान ३. आगम संस्कृत टीकाकार ने प्रत्यक्ष और प्रात्ययिक के दो-दो अर्थ किये हैं। प्रत्यक्ष के दो अर्थ——अवधि, मनःपर्याय और केवलज्ञान रूप मुख्य या पारमार्थिक प्रत्यक्ष और स्वयंदर्शन रूप स्वसंवेदन प्रत्यक्ष । प्रात्ययिक के दो अर्थ–१. इन्द्रिय और मन के निमित्त से होने वाला ज्ञान (सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष ) और २. आप्तपुरुष के वचन से होने वाला ज्ञान ( आगम ज्ञान ) । तीसरा वर्गीकरण वर्तमान और भावी जीवन के आधार पर किया गया है। मनुष्य के कुछ व्यवसाय वर्तमान - जीवन की दृष्टि से होते हैं, कुछ भावी जीवन की दृष्टि से और कुछ दोनों की दृष्टि से। ये क्रमशः ऐहलौकिक,
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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