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________________ १६३ तृतीय स्थान– तृतीय उद्देश पारलौकिक और ऐहलौकिक-पारलौकिक व्यवसाय कहलाते हैं। ___चौथा वर्गीकरण विचार-धारा या शास्त्रों के आधार पर किया गया है। इसमें मुख्यतः तीन विचार-धाराएं वर्णित हैं—लौकिक, वैदिक और सामयिक। लौकिक विचारधारा के प्रतिपादक होते हैं—अर्थशास्त्री, धर्मशास्त्री और कामशास्त्री। ये लोग अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र और कामशास्त्र के माध्यम से अर्थ, धर्म और काम के औचित्य एवं अनौचित्य का निर्णय करते हैं। सूत्रकार ने इसे लौकिक व्यवसाय माना है। इस विचारधारा का किसी धर्म या दर्शन से सम्बन्ध नहीं होता। इसका सम्बन्ध लोकमत से होता है। वैदिक विचारधारा के आधारभूत ग्रन्थ तीन है—ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद । इस वर्गीकरण में व्यवसाय के निमित्तभूत ग्रन्थों को व्यवसाय ही कहा गया है। संस्कृत टीकाकार ने सामयिक व्यवसाय का अर्थ सांख्य आदि दर्शनों के समय या सिद्धान्त से होने वाला व्यवसाय किया है। प्राचीनकाल में सांख्यदर्शन श्रमण-परम्परा का ही एक अंग रहा है। उसी दृष्टि से टीकाकार ने यहां मुख्यता से सांख्य का उल्लेख किया है। सामयिक व्यवसाय के तीनों प्रकारों का दो नयों से अर्थ किया जा सकता है। एक नय के अनुसार१. ज्ञान व्यवसाय— ज्ञान का निश्चय या ज्ञान के द्वारा होने वाला निश्चय। २. दर्शन व्यवसाय- दर्शन का निश्चय या दर्शन के द्वारा होने वाला निश्चय। ३. चारित्र व्यवसाय-सदाचरण का निश्चय। दूसरे नय के अनुसार ज्ञान, दर्शन और चारित्र, ये श्रमण-परम्परा या जैनशासन के प्रधान व्यवसाय हैं और इनके समुदाय को ही रत्नत्रयात्मक धर्म-व्यवसाय या मोक्ष-पुरुषार्थ का कारणभूत धर्मपुरुषार्थ कहा गया है। अर्थ-योनि-सूत्र ४००-तिविधा अत्थजोणी पण्णत्ता, तं जहा सामे, दंडे, भेदे। अर्थयोनि तीन प्रकार की कही गई है—सामयोनि, दण्डयोनि और भेदयोनि (४००)। विवेचन— राज्यलक्ष्मी आदि की प्राप्ति के उपायभुत कारणों को अर्थयोनि कहते हैं। राजनीति में इसके लिए साम, दान, दण्ड और भेद इन चार उपायों का उपयोग किया जाता है। प्रस्तुत सूत्र में दान को छोड़ कर शेष तीन उपायों का उल्लेख किया गया है। यदि प्रतिपक्षी व्यक्ति अपने से अधिक बलवान, समर्थ या सैन्यशक्ति वाला हो तो उसके साथ सामनीति का प्रयोग करना चाहिए। समभाव के साथ प्रिय वचन बोलकर, अपने पूर्वजों के कुलक्रमागत स्नेह-पूर्ण सम्बन्धों की याद दिला कर तथा भविष्य में होने वाले मधुर सम्बन्धों की सम्भावनाएं बतलाकर प्रतिपक्षी को अपने अनुकूल करना सामनीति कही जाती है। जब प्रतिपक्षी व्यक्ति सामनीति से अनुकूल न हो, तब दण्डनीति का प्रयोग किया जाता है । दण्ड के तीन भेदों का संस्कृत टीकाकार ने उल्लेख किया है—वध, परिक्लेश और धन-हरण । यदि शत्रु उग्र हो तो उसका वध करना, यदि उससे हीन हो तो उसे विभिन्न उपायों से कष्ट पहुंचाना और यदि उससे भी कमजोर हो तो उसके धन का अपहरण कर लेना दण्डनीति है। टीकाकार द्वारा उद्धृत श्लोक में भेदनीति के तीन भेद कहे गये हैं स्नेहरागापनयन स्नेह या अनुराग का दूर करना, संहर्षोत्पादन स्पर्धा
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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