SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय स्थान– तृतीय उद्देश १५३ २. देव, नाग, यक्ष या भूत सम्यक् प्रकार से आराधित होने पर अन्यत्र समुत्थित वर्षा में परिणत तथा बरसने ही वाले उदक-पुद्गलों का उनके द्वारा उस देश में संहरण होने से। ३. समुत्थित, वर्षा में परिणत तथा बरसने ही वाले बादलों के वायु द्वारा नष्ट न होने से। इन तीन कारणों से महावृष्टि होती है (३६०)। अधुनोपपन्न-देव-सूत्र ३६१- तिहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए, तं जहा १. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववण्णे, से णं माणुस्सए कामभोगे णो आढाति, णो परियाणाति, णो अटुं बंधति, णो णियाणं पगरेति, णो ठिइपकप्पं पगरेति। २. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववण्णे, तस्स णं माणुस्सए पेम्मे वोच्छिण्णे दिव्वे संकंते भवति। ३. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते [ गिद्धे गढिते ] अज्झोववण्णे तस्स णं एवं भवति इण्हिं गच्छं मुहुत्तं गच्छं, तेणं कालेणमप्पाउया मणुस्सा कालधम्मणा संजुत्ता भवंति। __इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए णो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए। देवलोक में तत्काल उत्पन्न देव शीघ्र ही मनुष्यलोक में आना चाहता है, किन्तु तीन कारणों से आ नहीं सकता १. देवलोक में तत्काल उत्पन्न देव दिव्य काम-भोगों में मूर्छित, गृद्ध, बद्ध एवं आसक्त होकर मानुषिक काम-भोगों को न आदर देता है, न उन्हें अच्छा जानता है, न उनसे प्रयोजन रखता है, न निदान (उन्हें पाने का संकल्प) करता है और न स्थिति-प्रकल्प (उनके बीच में रहने की इच्छा) करता है। २. देवलोक में तत्काल उत्पन्न, दिव्य काम-भोगों में मूर्च्छित, गृद्ध, बद्ध एवं आसक्त देव का मानुषिक-प्रेम व्युच्छिन्न हो जाता है तथा उसमें दिव्य प्रेम संक्रांत हो जाता है। ३. दिव्यलोक में तत्काल उत्पन्न, दिव्य काम-भोगों में मूर्च्छित, (गृद्ध, बद्ध) तथा आसक्त देव सोचता हैमैं मनुष्य लोक में अभी नहीं थोड़ी देर में, एक मुहूर्त के बाद जाऊंगा, इस प्रकार उसके सोचते रहने के समय में ही अल्प आयु का धारक मनुष्य (जिनके लिए वह जाना चाहता था) कालधर्म से संयुक्त हो जाते हैं (मर जाते हैं)। इन तीन कारणों से देवलोक में तत्काल उत्पन्न देव शीघ्र ही मनुष्यलोक में आना चाहता है, किन्तु आ नहीं पाता (३६१)। ३६२– तिहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, संचाएइ हव्वमागच्छित्तए
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy