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________________ १५२ स्थानाङ्गसूत्रम् २. तदन्यमन - अलक्ष्य में लगा हुआ मन। ३. नो-अमन- मन का लक्ष्य-हीन व्यापार (३५७)। अमन तीन प्रकार का कहा गया है. १. नो-तन्मन- लक्ष्य में नहीं लगा हुआ मन। २. नो-तदन्यमन- अलक्ष्य में नहीं लगा अर्थात् लक्ष्य में लगा हुआ मन। ३. अमन- मन की अप्रवृत्ति (३५८)। . वृष्टि-सूत्र ३५९– तिहिं ठाणेहि अप्पवुट्ठीकाए सिया, तं जहा १. तस्सि च णं देसंसि वा पदेससि वा णो बहवे उदगजोणिया जीवा य पोग्गला य उदगत्ताते वक्कमंति विउक्कमति चयंति उववजति। २. देवा णागा जक्खा भूता णो सम्ममाराहिता भवंति, तत्थ समुट्ठियं उदगपोग्गलं परिणतं वासितुकामं अण्णं देसं साहरंति। ३. अब्भवद्दलगं च णं समुट्ठितं परिणतं वासितुकामं वाउकाए विधुणति। इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं अप्पवुट्टिकाए सिया। तीन कारणों से अल्पवृष्टि होती है— १. किसी देश या प्रदेश में (क्षेत्र स्वभाव से) पर्याप्त मात्रा में उदकयोनिक जीवों और पुद्गलों के उदकरूप में उत्पन्न या च्यवन न करने से। २. देवों, नागों, यक्षों या भूतों का सम्यक् प्रकार से आराधन न करने से, उस देश में समुत्थित, वर्षा में परिणत तथा बरसने ही वाले उदक-पुद्गलों (मेघों) का उनके द्वारा अन्य देश में संहरण कर लेने से। ३. समुत्थित, वर्षा में परिणत तथा बरसने ही वाले बादलों को प्रचंड वायु नष्ट कर देती है। इन तीन कारणों से अल्पवृष्टि होती है (३५९)। ३६०- तिहिं ठाणेहिं महावुट्ठीकाए सिया, तं जहा १. तस्सि च णं देसंसि वा पदेसंसि वा बहवे उदगजोणिया जीवा य पोग्गला य उदगत्ताए वक्कमति विउक्कमति चयंति उववजंति। २. देवा णागा जक्खा भूता सम्ममाराहिता भवंति, अण्णत्थ समुट्ठितं उदगपोग्गलं परिणयं वासिउकामं तं देसं साहरंति। ३. अब्भवद्दलगं च णं समुद्रुितं परिणयं वासितुकामं णो वाउआए विधुणति। इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं महावुट्टिकाए सिया। तीन कारणों से महावृष्टि होती है १. किसी देश या प्रदेश में (क्षेत्र-स्वभाव से) पर्याप्त मात्रा में उदकयोनिक जीवों और पुद्गलों के उदक रूप में उत्पन्न या च्यवन होने से।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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