________________
१५४
स्थानाङ्गसूत्रम्
१. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिते अगिद्धे अगढिते अणझोववण्णे, तस्स णमेवं भवति–अस्थि णं मम माणुस्सए भवे आयरिएति वा उवज्झाएति वा पवत्तीति वा थेरेति वा गणीति वा गणधरेति वा गणावच्छेदेति वा, जेसिं पभावेणं मए इमा एतारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवजुती दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागते, तं गच्छामि णं ते भगवंते वंदामि णमंस्सामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि।
२. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिए [अगिद्धे अगढिते ] अणज्झोववण्णे, तस्स णं एवं भवति–एस णं माणुस्सए भवे णाणीति वा तवस्सीति वा अतिदुक्करदुक्करकारगे, तं गच्छामि णं ते भगवंते वंदामि णमंसामि [ सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं] पजुवासामि।
३. अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु [दिव्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिए अगिद्धे अगढिते] अणझोववण्णे, तस्स णमेवं भवति अस्थि णं मम माणुस्सए भवे माताति वा [पियाति वा भायाति वा भगिणीति वा भजाति वा पुत्ताति वा धूयाति वा] सुण्हाति वा, तं गच्छामि णं तेसिमंतियं पाउब्भवामि, पासंतु ता मे इमं एतारूवं दिव्वं देविढेि दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवाणुभावं लद्धं पत्तं अभिसमण्णागयं।
इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं अहुणोववण्णे देवे देवलोगेसु इच्छेज माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, संचाएति हव्वमागच्छित्तए।
तीन कारणों से देवलोक में तत्काल उत्पन्न देव शीघ्र ही मनुष्यलोक में आना चाहता है, और आने में समर्थ भी होता है
१. देवलोक में तत्काल उत्पन्न, दिव्य काम-भोगों में अमूर्च्छित, अगृद्ध, अबद्ध एवं अनासक्त देव सोचता है—मनुष्यलोक में मेरे मनुष्य भव के आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणी, गणधर और गणावच्छेदक हैं, जिनके प्रभाव से मुझे यह इस प्रकार की दिव्य देव-ऋद्धि, दिव्य देव-द्युति और दिव्य देवानुभाव मिला है, प्राप्त हुआ है, अभिसमन्वागत (भोग्य-अवस्था को प्राप्त) हुआ है। अतः मैं जाऊं और उन भगवन्तों को वन्दन करूं, नमस्कार करूं, उनका सत्कार करूं, सम्मान करूं तथा उन कल्याणकर, मंगलमय, देव और चैत्य स्वरूप की पर्युपासना करूं।
२. देवलोक में तत्काल उत्पन्न, दिव्य काम-भोगों में अमूर्च्छित (अगृद्ध, अबद्ध) एवं अनासक्त देव सोचता है कि मनुष्य भव में अनेक ज्ञानी, तपस्वी और अतिदुष्कर तपस्या करने वाले हैं। अतः मैं जाऊं और उन भगवन्तों को वन्दन करूं, नमस्कार करूं (उनका सत्कार करूं, सम्मान करूं तथा उन कल्याणकर, मंगलमय देवरूप तथा ज्ञानस्वरूप) भगवन्तों की पर्युपासना करूं।
३. देवलोक में तत्काल उत्पन्न (दिव्य काम-भोगों में अमूर्च्छित, अगृद्ध, अबद्ध) एवं अनासक्त देव सोचता है—मेरे मनुष्य भव के माता, (पिता, भाई, बहिन, स्त्री, पुत्र, पुत्री) और पुत्र-वधू हैं, अतः मैं उनके पास जाऊं और उनके सामने प्रकट होऊं, जिससे वे मेरी इस प्रकार की दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देव-द्युति और दिव्य देवानुभाव