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तृतीय स्थान- द्वितीय उद्देश दुर्मनस्क होता है (३०८)]
३०९- [तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—फासं फासेत्ता णामेगे सुमणे भवति, फासं फासेत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, फासं फासेत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। ३१०- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–फासं फासेमीतेगे सुमणे भवति, फासं फासेमीतेगे दुम्मणे भवति, फासं फासेमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। ३११- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—फासं फासिस्सामीतेगे सुमणे भवति, फासं फासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, फासं फासिस्सामीतेगे णोसुमणेणोदुम्मणे भवति।]
[पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श करके' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष स्पर्श को स्पर्श करके' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष स्पर्श को स्पर्श करके न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (३०९)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है । कोई पुरुष स्पर्श को स्पर्श करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (३१०)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (३११)।]
३१२- [तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—फासं अफासेत्ता णामेगे सुमणे भवति, फासं अफासेत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, फासं अफासेत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। ३१३ - तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—फासं ण फासेमीतेगे सुमणे भवति, फासं ण फासेमीतेगे दुम्मणे भवति, फासं ण फासेमीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। ३१४- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—फासं ण फासिस्सामीतेगे सुमणे भवति, फासं ण फासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, फासं ण फासिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।]
[पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करके' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करके' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करके' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (३१२) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (३१३)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'स्पर्श को स्पर्श नहीं करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (३१४)।]
विवेचन— उपर्युक्त १८८ से ३१४ तक के सूत्रों में पुरुषों की मानसिक दशाओं का विश्लेषण किया गया है। कोई पुरुष उसी कार्य को करते हुए हर्ष का अनुभव करता है, यह व्यक्ति की रागपरिणति है, दूसरा व्यक्ति उसी कार्य को करते हुए विषाद का अनुभव करता है यह उसकी द्वेषपरिणति का सूचक है। तीसरा व्यक्ति उसी कार्य को