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________________ १४० स्थानाङ्गसूत्रम् (३००)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूंघता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूंघता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूंघता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (३०१)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूंघूगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूंघूगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूंघूगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (३०२)।] ___ ३०३ - [तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सं आसाइत्ता णामेगे सुमणे भवति, रसं आसाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, रसं आसाइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। ३०४ – तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सं आसादेमीतेगे सुमणे भवति, रसं आसादेमीतेगे दुम्मणे भवति, रसं आसादेमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। ३०५- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–रसं आसादिस्सामीतेगे सुमणे भवति, रसं आसादिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, रसं आसादिस्सामीतेगे णोसुमणेणोदुम्मणे भवति।] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'रस आस्वादन कर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'रस आस्वादन कर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'रस आस्वादन कर' न सुमनस्क. होता है और न दुर्मनस्क होता है (३०३)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'रस आस्वादन करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'रस आस्वादन करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष रस आस्वादन करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (३०४) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'रस आस्वादन करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'रस आस्वादन करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'रस आस्वादन करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (३०५)।] ३०६- [तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—रसं अणासाइत्ता णामेगे सुमणे भवति, रसं अणासाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, रसं अणासाइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। ३०७ - तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–रसं ण आसादेमीतेगे सुमणे भवति, रसं ण आसादेमीतेगे दुम्मणे भवति, रसं ण आसादेमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। ३०८- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सं ण आसादिस्सामीतेगे सुमणे भवति, रसं ण आसादिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, रसं ण आसादिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'रस आस्वादन नहीं करके' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'रस आस्वादन नहीं करके' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'रस आस्वादन नहीं करके न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (३०६)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'रस आस्वादन नहीं करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'रस आस्वादन नहीं करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'रस आस्वादन नहीं करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (३०७)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'रस आस्वादन नहीं करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'रस आस्वादन नहीं करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'रस आस्वादन नहीं करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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