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________________ तृतीय स्थान – द्वितीय उद्देश १३९ रूवं ण पासामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २९६- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा रूवं ण पासिस्सामीतेगे सुमणे भवति, रूवं ण पासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, रूवं ण पासिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'रूप न देखकर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'रूप न देखकर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'रूप न देखकर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२९४)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'रूप नहीं देखता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'रूप नहीं देखता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष रूप नहीं देखता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२९५) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'रूप नहीं देखूगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'रूप नहीं देखूगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'रूप नहीं देखूगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२९६)।] २९७ - [तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ांधं अग्घाइत्ता णामेगे सुमणे भवति, गंधं अग्घाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, गंधं अग्घाइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २९८- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहागंध अग्घामीतेगे सुमणे भवति, गंध अग्घामीतेगे दुम्मणे भवति, गंध अग्घामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २९९- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहागधं अग्याइस्सामीतेगे सुमणे भवति, गंधं अग्याइस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, गंधं अग्याइस्सामीतेगे णोसुमणेणोदुम्मणे भवति।] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'गन्ध सूंघकर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'गन्ध सूंघकर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'गन्ध सूंघकर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२९७) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'गन्ध सूंघता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'गन्ध सूंघता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'गन्ध सूंघता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२९८)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'गन्ध सूंघूगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'गन्ध सूंघूगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'गन्ध सूंघूगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२९९)।] ३००-[तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहाधं अणग्याइत्ता णामेगे सुमणे भवति, गंध अणग्याइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, गंधं अणग्याइत्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। ३०१तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा गंध अणग्यामीतेगे सुमणे भवति, गंध अणग्घामीतेगे दुम्मणे भवति, गंध अणग्यामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। ३०२- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गंधं ण अग्घाइस्सामीतेगे सुमणे भवति, गंधं ण अग्याइस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, गंधं ण अग्याइस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूंघकर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूंघकर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'गन्ध नहीं सूंघकर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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