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________________ तृतीय स्थान — द्वितीय उद्देश भवति, पराजिणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, पराजिणिस्सामीतेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति । ] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष (किसी को) 'पराजित करके' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'पराजित करके' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'पराजित करके' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है। (२७९)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष ' पराजित करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'पराजित करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष ' 'पराजित करता ' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२८०) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष 'पराजित करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'पराजित करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'पराजित करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२८१)।] १३७ २८२ - [ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- अपराजिणित्ता णामेगे सुमणे भवति, अपराजिणित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अपराजिणित्ता णामेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति । २८३– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण पराजिणामीतेगे सुमणे भवति, ण पराजिणामीतेगे दुम्मणे भवति, ण पराजिणामीतेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति । २८४ – तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा ण पराजिणिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण पराजिणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण पराजिणिस्सामीतेगे सुम-णोदुम्मणे भवति । ] [ पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष 'पराजित नहीं करके' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'पराजित नहीं करके' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'पराजित नहीं करके' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२८२) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष 'पराजित नहीं करता हूं इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'पराजित नहीं करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'पराजित नहीं करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२८३) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष 'पराजित नहीं करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है । कोई पुरुष 'पराजित नहीं करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'पराजित नहीं करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२८४) ।] २८५ [ओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सहं सुणेत्ता णामेगे सुमणे भवति, सद्दं सुणेत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, सद्दं सुणेत्ता णामेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति । २८६ - तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सहं सुणामीतेगे सुमणे भवति, सद्दं सुणामीतेगे दुम्मणे भवति, सद्दं सुणामीतेगे णोमणे - णोदुम्मणे भवति । २८७ तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—सद्दं सुणिस्सामीतेगे सुम्मणे भवति, सद्दं सुणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, सद्दं सुणिस्सामीतेगे णोसुमणे - णोदुम्मणे भवति । ] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष 'शब्द सुन करके' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'शब्द सुन करके' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'शब्द सुन करके ' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२८५)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष 'शब्द सुनता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है । कोई पुरुष 'शब्द सुनता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'शब्द सुनता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२८६) । पुन: पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं— कोई पुरुष ' शब्द सुनूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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