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________________ तृतीय स्थान द्वितीय उद्देश १३१ दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'संभाषण कर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२३१)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'मैं संभाषण करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'मैं संभाषण करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'मैं 'संभाषण करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२३२)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'मैं संभाषण करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'मैं संभाषण करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'मैं संभाषण करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२३३)।] २३४ - [तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अभासित्ता णामेगे सुमणे भवति, अभासित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अभासित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २३५- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–ण भासामीतेगे सुमणे भवति, ण भासामीतेगे दुम्मणे भवति, ण भासामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २३६- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण भासिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण भासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण भासिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष नहीं संभाषण कर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'नहीं संभाषण कर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं संभाषण कर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२३४) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष नहीं संभाषण करता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष नहीं संभाषण करता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं संभाषण करता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२३५)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'नहीं संभाषण करूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष नहीं संभाषण करूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं संभाषण करूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२३६)।] दच्चा-अदच्चा-पद २३७ - [तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–दच्चा णामेगे सुमणे भवति, दच्चा णामेगे दुम्मणे भवति, दच्चा णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २३८– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–देमीतेगे सुमणे भवति, देमीतेगे दुम्मणे भवति, देमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २३९तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–दासामीतेगे सुमणे भवति, दासामीतेगे दुम्मणे भवति, दासामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'देकर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'देकर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'देकर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२३७)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष देता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'देता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'देता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२३८)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष दूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'दूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष दूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२३९)। २४०- [तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अदच्चा णामेगे सुमणे भवति, अदच्चा णामेगे
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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