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________________ १२७ तृतीय स्थान— द्वितीय उद्देश दुर्मनस्क होता है (२००)]। २०१– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—चिट्ठित्ता णामेगे सुमणे भवति, चिट्ठित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, चिट्ठित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २०२— तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा चिट्ठामीतेगे सुमणे भवति, चिट्ठामीतेगे दुम्मणे भवति, चिट्ठामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २०३- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—चिट्ठिस्सामीतेगे सुमणे भवति, चिट्ठिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, चिट्ठिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'ठहर कर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'ठहर कर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष ठहर कर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२०१)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'ठहरता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष ठहरता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष ठहरता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२०२)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'ठहरूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'ठहरूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष 'ठहरूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२०३)।] २०४- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—अचिट्ठित्ता णामेगे सुमणे भवति, अचिट्ठित्ता णामेगे दुम्मणे भवति, अचिट्ठित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २०५ - तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण चिट्ठामीतेगे सुमणे भवति, ण चिट्ठामीतेगे दुम्मणे भवति, ण चिट्ठामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २०६– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—ण चिट्ठिस्सामीतेगे सुमणे भवति, ण चिट्ठिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, ण चिट्ठिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। [पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'नहीं ठहर कर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'नहीं ठहर कर' दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं ठहर कर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२०४)। पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'नहीं ठहरता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'नहीं ठहरता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं ठहरता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२०५) । पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं कोई पुरुष नहीं ठहरूंगा' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष नहीं ठहरूंगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है तथा कोई पुरुष नहीं ठहरूंगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (२०६)। २०७– तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहाणिसिइत्ता णामेगे सुमणे भवति, णिसिइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, णिसिइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति। २०८- [तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहाणिसीदामीतेगे सुमणे भवति, णिसीदामीतेगे दुम्मणे भवति, णिसीदामीतेगे णोसुमणेणोदुम्मणे भवति। २०९- तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–णिसीदिस्सामीतेगे सुमणे भवति, णिसीदिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, णिसीदिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवति।] [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं कोई पुरुष 'बैठ कर' सुमनस्क होता है। कोई पुरुष बैठ कर' दुर्मनस्क
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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